एक हाथी था। उसका मित्र बंदर था। लेकिन एक दिन उन दोनों की मित्रता टूट गई। तो हाथी और बंदर अलग-अलग हो गए।
एक दिन बंदर ने हाथी को चिढ़ाया। वह बोला- ‘लंबी सूंड सूपा जैसे कान, मोटे-मोटे पैर।’ यह सुनकर हाथी को गुस्सा आया तो वह भी बंदर को चिढ़ाने लगा। ‘इतनी लंबी पूंछ, काला मुंह का बंदर।’
यह सुनकर बंदर को भी गुस्सा आया। उसने हाथी को नाखून गड़ा दिए, तो हाथी ने उसको सूंड से पकड़कर गोल-गोल घुमाकर नदीं में फेंक दिया, तो बंदर चिल्लाने लगा – हाथी मुझे बचाओ-बचाओ। हाथी को दया आ गई और उसे पानी से बाहर निकाल लिया। बंदर ने हाथी से माफी मांगी, मुझे माफ कर दो। हाथी ने बंदर को माफ कर दिया और दोनों फिर से अच्छे से रहने लग गए।
नीलम सोनी