1889 में प्रारंभिक शिक्षा हेतु बालक तात्या को गांव की पाठशाला में प्रविष्ट कराया गया। उसने इस पाठशाला में पाचवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की। अपनी शिक्षा के इस प्रारंभिक चरण में भी बालक तात्या अपने समवयस्क बालकों के साथ युद्ध-संबंधी खेल ही खेलते रहते थे। बालकों के दो दल बनाये जाते, कृत्रिम दुर्ग-रचना होती। फिर एक दल, दूसरे दल पर आक्रमण करता।
इस पाठशाला में पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें आगे पढ़ने के लिए नासिक भेज दिया गया। अपने इस विद्यार्थी जीवन में भी तात्या का देश-प्रेम निरंतर पल्लवित होता रहा। यहां भी वह अपने मित्र विद्यार्थियों को राष्ट्र-प्रेम का पाठ पढ़ाते रहते। इसी समय से उन्होंने मराठी में कविताएं लिखनी भी प्रारंभ कर दी। उनकी ये देश-भक्ति परक कविताएं मराठी के तत्कालीन मुख्य पत्रों में प्रकाशित हुई। यही नहीं, वह राष्ट्र-प्रेम से ओत-प्रोत साहित्य का भी अध्ययन करने लगे। राष्ट्रीय भावना युक्त समाचार पत्रों को पढ़ना अब उनके जीवन का मुख्य कार्य बन गया था।
श्री लोकमान्य तिलक द्वारा संचालित ‘केसरी’ पत्र की उन दिनों भारी धूम थी। केसरी में प्रकाशित लेखों को पढ़कर विनायक सावरकर के हृदय में राष्ट्रभक्ति की भावनाएँ हिलोरें लेने लगीं। लेखों, संपादकीय व कविताओं को पढ़कर उन्होंने जाना कि भारत को दासता के चंगुल में रखकर अंग्रेज किस प्रकार भारत का शोषण कर रहे हैं। किस प्रकार हम अपने ही देश में गुलामी का जीवन बिता रहे हैं।
उन्होंने अपने जोशीले व राष्ट्रभक्त साथियों के साथ मिलकर ‘मित्र मेला’ संस्था के तत्त्वावधान में ‘गणेशोत्सव’, ‘शिवाजी महोत्सव’ आदि कार्यक्रम आयोजित करके युवकों में स्वाधीनता के प्रति चेतना पैदा करने का कार्य शुरू किया।