सावरकर ने 1907 में ‘1857 का प्रथम स्वातंत्र्य-समर’ गं्रथ लिखना शुरू किया।कर्जन वायली द्वारा स्थापित इंडिया ऑफिस के पुस्कालय में बैठकर वे विभिन्न दस्तावेजों व ग्रंथों का अध्ययन करने लगे। उन्होंने गहन अध्ययन के बाद इसे लिखना शुरू किया। उन्होंने इसे मराठी में लिखा तथा साथ ही अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया।
ग्रंथ की पांडुलिपि किसी प्रकार गुप्त रूप से भारत पहुँचा दी गई। महाराष्ट्र में इसे प्रकाशित करने की योजना बनाई गई, किंतु कोई भी प्रेस छापने को तैयार नहीं हुआ। ‘स्वराज्य’ पत्र के संपादक ने इसे प्रकाशित करने का निर्णय लिया। किंतु पुलिस ने प्रेस पर छापा मारकर योजना में बाधा डाल दी।
ग्रंथ की पांडुलिपि गुप्त रूप से पेरिस भेज दी गई। वहाँ इसे प्रकाशित कराने का प्रयास किया गया, किंतु ब्रिटिश गुप्तचर वहाँ भी पहुँच गए और ग्रंथ को प्रकाशित होने नहीं दिया गया।
ब्रिटिश सरकार इस ग्रंथ के प्रकाशन की संभावना से बहुत परेशान थी। उसे भय था कि तथ्यों पर आधारित इस ग्रंथ के प्रकाशित होते ही भारत की स्वाधीनता का पक्ष संसार के समक्ष प्रकट हो जायेगा। अतः उसने ग्रंथ के प्रकाशित होने से पूर्व ही उस पर प्रतिबंध लगा दिया।
अंततः 1909 में ग्रंथ फ्रांस से प्रकशित हो ही गया। जिसका बाद में सन् 1928 में क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह ने ‘हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसिएशन’ की ओर से इस ग्रंथ का गुप्त रूप से प्रकाशन कराया।
28 फरवरी, 1909 को नासिक में सावरकर के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। उनके घर की तलाशी में ‘बम मैनुअल’ की प्रति भी बरामद की गई। उन्हें आजीवन कारावास का दंड दिया गया।