एक पंजे पर अभागा
खींचता बोझ जिंदगी का
सिकुड़ता एडी के बल डामर
जेष्ठ में तपता अनुप्राणित बचपन
बोझिल आँखें खोजती जीवन
शिराओं का पोषण
महामारी के चंगुल में
हाथ फैलाए अनुप्राणित बचपन
संघर्ष से पड़े पाँव में छाले
बंद शहर पर ताले
तलाशता बसेरा चढ़ता सूरज
कच्ची उम्र में अनुप्राणित बचपन
सीखा नहीं अभी जबान ने
जमाना आँखों से बतियाता
बेबस ऊपर कहर भूख का
कपता मासूम अनुप्राणित बचपन
गरीबी बचपना आने नहीं देता
चलता कतार में तड़पता
विवश लाचारी से नादान
सुरक्षा माँगता अनुप्राणित बचपन
गरिमा खण्डेलवाल D/o श्री कैलाश चंद्र खण्डेलवाल