मेरे गाँव की मिट्टी से, मुझे प्यार बहुत है
ये नौकरी के खातिर, कोसों की दूरी है।
मेरे गाँव की मिट्टी, बहुत निराली है
यहाँ के ढ़ले कभी, बिगड़ते नहीं है।
हाथी घोड़े खिलौने, बर्तन वो मिट्टी के
मिट्टी से बचपन में, घर-घर खेले हैं।
पेटियाँ आम की घर में, पर वो स्वाद नहीं है
खाए थे बचपन में, लिपटे गाँव की मिट्टी से।
अम्मा का सिलबट्टा, मुझे याद आता है
कुछ मीठा था कुछ खट्टा स्वाद चटनी का।
तारों भरी रातें, आसमान की चादर
शहर में याद आती है, मेरे गाँव की मिट्टी
पहली बारिश से भीगी, माटी की खुशबू सौंधी
हर बीज प्रस्फुटित, ऐसी मेरे गाँव की मिट्टी।
गरिमा खण्डेलवाल D/o श्री कैलाश चंद्र खण्डेलवाल