कन्फ्यूशियस अपने समय के महान् दार्शनिक और मंत्री हुए। एक बार वे चाइना के पहाड़ी गाँव में घूम रहे थे। वहाँ से गुजरते हुए उन्होंने देखा एक बड़े से खेत में एक बूढ़ा किसान और उसका जवान बेटा अपने हाथों से कुँए से पानी खींच कर खेत की सिंचाई कर रहे है। उस समय छोटे-छोटे किसान भी पानी खींचने के लिए जानवर और चक्कियों का प्रयोग करते थे।
कन्फ्यूशियस के मन में सवाल उठा कि यह किसान और उसका बेटा संपन्न दिखाई देते हैं। इतना बड़ा खेत है इनके पास, फिर भी यह इतनी मेहनत क्यों कर रहे है? कन्फ्यूशियस ने किसान से जाकर पूछा कि, ‘‘सुनो भाई तुम दोनों इतनी तकलीफ क्यों उठाते हो। तुम पानी खींचने के लिए जानवर और चक्कियों का इस्तेमाल क्यों नहीं करते हो।’’
बूढ़े किसान ने कहा, ‘‘आज से 10 महीने पहले मेरा बेटा क्षय रोग का शिकार हो गया। वह दिन-ब-दिन कमजोर होता चला गया। कई जगह इलाज करवाया, लेकिन कुछ फर्क नहीं पड़ा। बेटा दिन भर अकेले बिस्तर पर लेटा रहता। फिर एक दिन मैंने सोचा कि मैंने जीवन भर अपने खेत में पसीना बहाया और खूब मेहनत की, जिसका नतीजा है कि मैं कभी बीमार नहीं पड़ा। 65 साल का होने के बावजूद मैं भरपूर मेहनत कर लेता हूँ।
मैंने सोचा शायद मेहनत करने से इसका भी कुछ भला हो जाए। मैंने हर दिन अपने बीमार बेटे को खेत पर लाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे देखा-देखी बेटे ने भी मेरा हाथ बटाना शुरू किया। शुरु में तो बहुत तकलीफ होती थी। कभी-कभी थकान के कारण बुखार भी आ जाता था। गाँव वाले भी मना करते थे कि इस कमजोरी में इसे खेत पर मत लाया करो। फिर भी हम दोनों हर दिन खेत आते और कुछ ना कुछ काम करते। शुरू में बहुत तकलीफ हुई लेकिन फिर धीरे-धीरे बेटे की तबीयत पूरी तरह सुधर गई।’’
कन्फ्यूशियस बड़ी हैरानी से साधारण से दिखने वाले किसान की बात सुनते रहे। किसान ने कहा कि, ‘‘शायद आपको मेरी बात पर यकीन नहीं हो रहा है। हमारे प्रांत में कहावत है कि ‘‘दर्द से डर जाओगे, तो बढ़ नहीं पाओगे’’।
कई बार समाधान सरल होते हैं। जवाब धैर्य और मेहनत में छिपा होता है लेकिन कष्ट के कारण लोग इस सच को नजरअंदाज कर देते हैं और परेशान होते हैं।‘‘
ज्ञान बोध : जब आप दर्द को स्वीकार कर लेते हो कि यह कष्ट मेरे विकास के लिए है तब वह दर्द दुख नहीं देता बल्कि हम को ताकतवर बनाता है। इसलिए अगली बार जब भी हमको अतिरिक्त मेहनत करने में तकलीफ हो, वापस गिरकर उठने में तकलीफ हो, तो इस दर्द को दुख में न बदले बल्कि स्वीकार करके आगे बढ़ते चलें।
पुष्पा अहीर