‘‘देश के लिए जिसने विलास को ठुकराया था, त्याग विदेशी धागे उसने खुद ही खादी बनाया था !
पहन काठ के चप्पल जिसने सत्याग्रह का राग सुनाया था, देश का था वो अनमोल दीपक जो महात्मा कहलाया था !!’’
सत्याग्रह और अहिंसा के प्रति उनकी दृढ़ता को देखते हुए उनके निधन पर अर्नोल्ड जे टाॅयनबी ने अपने लेख में उन्हें पैगंबर कहा था। प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन का यह कथन लोगों की जुबान पर है कि ‘‘आने वाले समय में लोगों को सहज विश्वास नहीं होगा कि हाड़-मांस का एक ऐसा जीव था जिसने अहिंसा को अपना हथियार बनाया।’’ हिंसा भरे वैश्विक माहौल में महात्मा गांधी के विचारों की ग्राह्यता और भी बढ़ती जा रही है।
महात्मा गांधी जी के सार्द्ध शती 150वें जन्म वर्ष की समुत्कर्ष के पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएँ, साथ ही अभिनन्दन भी कि हम विश्व की उस महान विरासत के अंगभूत घटक हैं, जिसमें महात्मा गांधी जैसे महामनाओं ने जन्म लिया है। आधुनिक भारतीय चिंतन प्रवाह में महात्मा गांधी के विचार सार्वकालिक हैं। वे भारतीय उदात्त सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के अग्रदूत भी हैं और सहिष्णुता, उदारता और तेजस्विता के प्रामाणिक तथ्य भी, सत्यशोधक संत भी और शाश्वत सत्य के यथार्थ सामाजिक वैज्ञानिक भी। राजनीति, साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, विज्ञान और कला के अद्भुत मनीषी और मानववादी विश्व निर्माण के आदर्श मापदण्ड भी। सम्यक् प्रगति मार्ग के चिÐ भी और भारतीय संस्कृति के परम उद्घोषक भी।
महात्मा गांधी जी के लिए वेद, पुराण एवं उपनिषद का सारतत्व ही उनका ईश्वर है और बुद्ध, महावीर की करुणा ही उनकी अहिंसा। सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह, शरीर श्रम, अभय, सर्वधर्म समानता, स्वदेशी और समावेशी समाज निर्माण की परिकल्पना ही उनका आदर्श रहा है। अपने विचारों को उन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर जीवन के विविध पक्षों में आजमाया भी। तब लोगों का कहना था कि आजादी के लक्ष्य में सत्य और अहिंसा नहीं चलेगी। लेकिन गांधीजी ने दिखा दिया कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर भी आजादी को हासिल किया जा सकता है।
ऐसे समय में जब पूरे विश्व में हिंसा का बोलबाला है, कई राष्ट्र आपस में उलझ रहे हैं, मानवता खतरे में है, गरीबी, भूखमरी और कुपोषण लोगों को लील रहा है तो महात्मा गांधी के विचार बरबस प्रासंगिक हो जाते हैं। अब विश्व महसूस भी करने लगा है कि गांधी जी के बताए रास्ते पर चलकर ही विश्व को नैराश्य, द्वेष और प्रतिहिंसा से बचाया जा सकता है। महात्मा गांधी के विचार विश्व के लिए इसलिए भी प्रासंगिक हैं कि उन विचारों को उन्होंने स्वयं अपने आचरण में ढ़ालकर सिद्ध किया। उन विचारों को सत्य और अहिंसा की कसौटी पर जांचा-परखा।
सच तो यह है कि महात्मा गांधी के शाश्वत मूल्यों की प्रासंगिकता और बढ़ी है। गांधी सत्य एवं अहिंसा के न केवल प्रतीक भर हैं बल्कि मापदण्ड भी हैं, जिन्हें जीवन में उतारने की कोशिश हो रही है। आज के बदलते परिवेश में युवाओं को गांधी जी से प्रेरणा लेने की जरूरत है। कुछ वर्ष पहले अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम पत्रिका ने महात्मा गांधी की अगुवाई वाले ‘‘नमक सत्याग्रह’’ को दुनिया के सर्वाधिक दस प्रभावशाली आंदोलनों में शामिल किया था। सच यह भी है कि अब पूरा वैश्विक समुदाय यह मानने लगा है, उसे यह विश्वास होने लगा है कि महात्मा गांधी के नैतिक नियम पहले से कहीं और अधिक प्रासंगिक और प्रभावी होते जा रहे हैं और उनका दृढ़ता से अनुपालन होना चाहिए।
महात्मा गांधी जी राजनीतिक आजादी के साथ सामाजिक-आर्थिक आजादी के लिए भी चिंतित थे। समावेशी समाज की संरचना को कैसे मजबूत आधार दिया जाए उसके लिए उनका अपना स्वतंत्र बुनियादी चिंतन था। उन्होंने कहा कि जब तक समाज में विषमता रहेगी, हिंसा भी रहेगी। हिंसा को खत्म करने के लिए विषमता मिटाना जरूरी है। विषमता के कारण समृद्ध अपनी समृद्धि और गरीब अपनी गरीबी में मारा जाएगा। इसलिए ऐसा स्वराज हासिल करना होगा, जिसमें अमीर-गरीब के बीच खाई न हो। शिक्षा के संबंध में भी उनके विचार स्पष्ट थे। उन्होंने कहा है कि मैं पाश्चात्य संस्कृति का विरोधी नहीं हूँ। मैं अपने घर के खिड़की दरवाजों को खुला रखना चाहता हूँ जिससे बाहर की स्वच्छ हवा आ सके। लेकिन विदेशी भाषाओं की ऐसी आंधी भी न आ जाए कि मैं औंधे मुँह गिर पडूँ।
आज भूमंडलीकरण का दौर है और अब राज्य उपनिवेशवाद का स्थान बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद ने ले रखा है। महात्मा गांधी राज्य उपनिवेशवाद से लड़े थे, हमें बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद से जूझना है क्योंकि दैत्याकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और उनके साम्राज्य विस्तार को बढ़ावा देने वाले विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन की नापाक तिकड़ी का शिंकजा हम पर कसता जा रहा है। दरअसल गांधी जी के अनुसार विकास के लिए बुनियादी शर्त थी कि हम अंदर से सबल बनें, आन्तरिक संसाधनों पर हमारी ज्यादा निर्भरता हो, निर्णय लेने का अधिकार हमारे हाथों में हो और हमारी सारी व्यवस्थाएं स्वतंत्र स्फूर्त हो।
महात्मा गांधी जी नारी सशक्तीकरण के प्रबल पैरोकार थे। उन्होंने कहा कि जिस देश अथवा समाज में स्त्री का आदर नहीं होता उसे सुसंस्कृत नहीं कहा जा सकता। लेकिन दुर्भाग्य है कि महात्मा गांधी के ही देश में उनके आदर्श- विचारों की कद्र नहीं हो पा रही है। आज के दौर में भारत ही नहीं बल्कि विश्व समुदाय को भी समझना होगा कि उनके सुझाए रास्ते पर चलकर ही एक समृद्ध, सामथ्र्यवान, समतामूलक और सुसंस्कृत विश्व का निर्माण किया जा सकता है। आज दुनिया के किसी भी देश में जब कोई शांति मार्च निकलता है या अत्याचार व हिंसा का विरोध किया जाता है या हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जाना हो तो, ऐसे सभी अवसरों पर पूरी दुनिया को गांधी जी याद आते हैं।
अतः यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि गांधी के विचार, दर्शन तथा सिद्धांत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं तथा आने वाले समय में भी रहेंगे। आइये, महात्मा गांधी के सार्द्ध शती जन्म वर्ष पर उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का सत्संकल्प लें।