‘पौराणिक कथाओं के अनुसार वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवि देव ने वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है। पेड़ों उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते हैं, फूल वस्त्र पहनाते हैं, पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ऋतुओं में मैं वसंत हूँ । वसंत ऋतु में वसंत पंचमी, शिवरात्रि तथा होली नामक पर्व मनाए जाते हैं। भारतीय संगीत साहित्य और कला में इसे महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत में एक विशेष राग वसंत के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं।
वसंत उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी, मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। आम बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं, अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है और इसीलिए इसे ऋतुराज कहा गया है। वसन्त ऋतु वर्ष की एक प्रमुख ऋतु है जिसमें वातावरण का तापमान प्रायः सुखद रहता है। भारत में यह फरवरी से मार्च तक होती है। अन्य देशों में यह अलग समय पर हो सकती है। इस ऋतु की विशेषता है मौसम का गरम होना, फूलों का खिलना, पौधो का हरा भरा होना और बर्फ का पिघलना। भारत का एक मुख्य त्योहार है होली जो वसन्त ऋतु में मनाया जाता है। यह एक सन्तुलित मौसम है। इस मौसम मे चारों ओर हरियाली होती है। पेडो पर नये पत्ते उगते हैं।
वसंत पंचमी की पौराणिक मान्यताएं
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पचंमी के दिन
उनकी आराधना की जाएगी। तब से बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के पूजन की परंपरा चली आ रही है।
खास कर विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार मां सीता की तलाश करते हुए भगवान श्रीराम गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले
दंडकारण्य इलाके में पहुंचे। यहीं शबरी का आश्रम था। कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही भगवान
श्रीरामचंद्र यहां आये थे। इस क्षेत्र के लोग आज भी वहां मौजूद एक शिला का पूजन करते हैं। मान्यता है कि
भगवान श्रीराम इसी शिला पर बैठे थे। यहीं शबरी माता का मंदिर भी है।
सरस्वती वंदना
सरस्वती पूजा के मौके पर मां सरस्वती की स्तुति की जाती है। इस दौरान सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ किया जाता
है। कई शिक्षण संस्थानों में भी इस स्तोत्र के जरिए मां सरस्वती की वंदना की जाती है। आप घर में भी इस
स्तोत्र के जरिए मां सरस्वती की वंदना कर सकते हैं।
या कुन्देन्दु-तुषारहार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकर-प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
शुक्लां ब्रह्मविचार सारपरम-माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिता
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के अन्य नाम से भी जाना जाता है। वसंत पंचमी में फूलों में बहार आ
जाती है, खेतों में फसल लहलहाते नजर आते हैं। गेहूं और जौ की बालियाँ खिलने लगती है। आम के पेड़ों
में मंजर आ जाते हैं। सरसों के पीले-पीले फूल चहूं ओर दिखने लगते हैं। इतना ही नहीं मौसम भी इस समय
सुहाना लगने लगता है।
डॉ. सौरभ व्यास
प्राचार्य
संजीवनी कॉलेज, विजयनगर, अजमेर