समुत्कर्ष समिति द्वारा 56 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी ‘ ज्योति पर्व का सन्देश ‘ संपन्न l
” त्याग, बलिदान, साधना और उपासना का सन्देश देता है ज्योति पर्व “
उदयपुर, 10 नवम्बर। समुत्कर्ष समिति द्वारा मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में “ ज्योति पर्व का सन्देश ” विषयक 56 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन फतह स्कूल में किया गया। गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि ज्योति अर्थात प्रकाश जहां ज्ञान और तेजस्विता का प्रतीक है, वहीं वह त्याग, बलिदान, साधना और उपासना का भी प्रतीक है। यही नहीं वह तप और त्याग की महत्ता का परिचायक भी है। यही प्रकाश हमारी संस्कृति का मंगल प्रतीक भी है जो अमावस्या के घनघोर अंधकार में असत्य से सत्य और अंधेरे से प्रकाश की ओर जाने की उदघोषणा करता है।
विषय का प्रवर्तन करते हुए समुत्कर्ष पत्रिका के सम्पादक वैद्य रामेश्वर प्रसाद शर्मा ने कहा कि मनुष्य का रुझान हमेशा प्रकाश की ओर रहा है। अंधकार को उसने कभी न चाहा न कभी मांगा। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ भक्त की अंतर-भावना का यह स्वर भी इसका पुष्ट प्रमाण है। ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो’ इस प्रशस्त कामना की पूर्णता हेतु मनुष्य ने खोज शुरू की।
समुत्कर्ष के वरिष्ठ कार्यकर्ता गोपाल लाल माली ने इस अवसर पर कहा कि अंधकार को परास्त करते हुए यह पर्व संदेश देता है कि अंत:करण को शुद्ध एवं पवित्र रखते हुए और अपनी चेतना, अपनी आत्मा में प्रकाश का संचार करते हुए ज्ञान का, धर्म का और कर्म का दीप जलाए। जीवन के हर उच्छवास को नया अंदाज देने वाला यह त्यौहार जन-जन में नई उमंग व नई तरंग को पैदा करता है l समूची भारतीय परम्परा का यह एक अलौकिक त्यौहार है, जिसके साथ अनेक परम्पराएं एक साथ जुड़ी हुई है l
ज्योति पर्व का वर्णन करते हुए तरुण कुमार दाधीच ने कहा कि इस पर्व के साथ अनेक महापुरुषों के जीवन का स्वर्णिम इतिहास जुड़ा हुआ है l मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, महाराजा युधिष्ठिर, भगवन महावीर, स्वामी दयानंद सरस्वती भारतीय वसुधा के ये उज्ज्वल नक्षत्र समूची मानव जाति के परित्राण हेतु जीवनभर जागरूक रहें और सहस्राब्दियों के बाद आज भी अपनी प्रासंगिकता को प्रमाणित करते हुए स्थिर खड़े हैं l
संदीप आमेटा ने संचालन करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक अखंड ज्योति जल रही है। उसकी लौ कभी-कभार मद्धिम जरूर हो जाती है, लेकिन बुझती नहीं है। उसका प्रकाश शाश्वत प्रकाश है। प्रकाश हमारी सद्प्रवृत्तियों का, सद्ज्ञान का, संवेदना एवं करुणा का, प्रेम एवं भाईचारे का, त्याग एवं सहिष्णुता का, सुख और शांति का, ऋद्धि और समृद्धि का, शुभ और लाभ का, श्री और सिद्धि का अर्थात दैवीय गुणों का प्रतीक है। यही प्रकाश मनुष्य की अंतरचेतना से जब जागृत होता है, तभी इस धरती पर सतयुग का अवतरण होने लगता है।
हरिदत्त शर्मा ने आव्हान करते हुए कहा कि आओ, एक बार हम सभी अपने बैठकर स्वयं का अवलोकन करें, ज्ञानदीप जलाकर वैयक्तिक और सामूहिक कठिनाईयों और परेशानियों को दूर करने का प्रयास करें l अपने मन और इंद्रियों को संयम से संवारें l कर्म-विचार के व्यतिपाक्त से उत्पन्न कचरे को साफ करके अखण्ड ज्योति वाले दीप को प्रज्वलित कर अंधकार से प्रकाश की तरफ बढ़ जाएं l आइए, अंतर-दीप जलाकर ज्योति दीप के आलोक में ज्योतिर्मय बने l
इस अवसर पर विनोद शर्मा, कविता शर्मा, प्रवीण, चन्द्रशेखर जोशी, अनुराग मेड़तवाल आदि उपस्थित थे ।
लोकेश जोशी
94147 32617
विचार गोष्ठी संयोजक