समुत्कर्ष समिति द्वारा गुरु नानक देव जी के 550 वें प्रकाश पर्व के परिप्रेक्ष्य में ‘‘समता और समानता के पक्षधर थे गुरु नानक’’ विषय पर समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार रखते हुए स्पष्ट किया कि गुरु नानक देव जी का जीवन दर्शन जातीय भेद भाव, वैरभाव और राग-द्वेष को मिटाने का जीवंत सन्देश देता है। उनका मंत्र था नाम जपो, कीरत करो और वंड छको।
विषय का प्रवर्तन करते हुए वैद्य रामेश्वर प्रसाद शर्मा ने कहा की गुरु नानक देव जी का जीवन दर्शन धर्म और अध्यात्म, लौकिक तथा पारलौकिक सुख-समृद्धि के लिए श्रम, शक्ति एवं मनोयोग- सहयोग के सम्यक नियोजन की प्रेरणा देता है। आपका न केवल बाहरी व्यक्तित्व अपितु आंतरिक व्यक्तित्व भी विलक्षण एवं अलौकिक था, जिसने देश की नैतिक आत्मा को जागृत करने का भगीरथ प्रयत्न किया। सामाजिक कुरूढ़ियों को बदलने के लिए किए गए उनके सत्प्रयत्न सदैव स्मरण किए जायेंगे।
संचालन करते हुए शिवशंकर खंडेलवाल कहना था कि गुरु नानक देव ने इक ओंकार का नारा दिया अर्थात् ईश्वर एक है। वह सभी जगह मौजूद है। समाज में समानता का नारा देने के लिए नानक देव ने कहा कि ईश्वर हमारा पिता है और हम सब उसके बच्चे हैं और पिता की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं होता। जब हम ‘एक पिता एकस के हम बारिक’ बन जाते हैं तो पिता की निगाह में जात-पात का सवाल ही नहीं पैदा होता।
अपने विचार रखते हुए हरिदत्त शर्मा ने कहा कि गुरु नानक देव के अनुसार सभी को स्त्री-जाति का आदर करना चाहिए। वे स्त्री और पुरुष सभी को बराबर मानते थे। उन्होंने जात-पांत को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने की दिशा में कदम उठाते हुए ‘लंगर’ की प्रथा शुरू की थी। लंगर में सब छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में उसी लंगर की व्यवस्था चल रही है। गुरु नानक देव ने उन अच्छाइयों पर जोर दिया, जिनसे समाज को ऊंचा उठाने में मदद मिले। एक तरह से उनकी शिक्षाएं केवल दर्शन नहीं एक आचार शास्त्र हैं। उन्होंने आचरण पर सर्वाधिक जोर दिया- आत्मनिर्भरता, बांट के खाना, स्वावलंबन, दया, विवेक-विचार, विद्या और नम्रता।
गोपाल लाल माली ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ऊंच-नीच का विरोध करते हुए गुरु नानकदेव अपनी मुखवाणी ‘जपुजी साहिब’ में कहते हैं कि ‘नानक उत्तम-नीच न कोई‘ अर्थात् ईश्वर की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं है। गुरु नानक ने समाज को बताया कि मानव जाति तो एक ही है फिर जाति के कारण ऊंच-नीच क्यों? मनुष्य की जाति न पूछो, जब व्यक्ति ईश्वर के दरबार में जाएगा तो वहां जाति नहीं पूछी जाएगी। सिर्फ उसके कर्म ही देखे जाएंगे।
अन्त में आभार व्यक्त करते हुए समुत्कर्ष के उपसम्पादक गोविन्द शर्मा ने कहा कि गुरु नानक देव जी का जीवन सन्देश जड़ नहीं, सतत जागृति और चैतन्य की अभिक्रिया है। जागृत चेतना का निर्मल प्रवाह है। उनकी शिक्षाएं एवं धार्मिक उपदेश अनंत ऊर्जा के स्रोत हैं। जो आज की शोषण, अन्याय, अलगाव और संवेदनशून्यता पर टिकी समाज व्यवस्था को बदलने वाला शक्तिस्रोत भी हैं।