समुत्कर्ष समिति द्वारा मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में – “सामर्थ्य सलिला.मातृ शक्ति” विषयक मासिक विचार गोष्ठी का आयोजन उदयपुर में किया गया। गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि समाज और संस्कारों के निर्माण में नारी की अहम् भूमिका है। भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है। नारी शक्ति की चेतना का प्रतीक है। साथ ही यह जीवन की प्रमुख सहचरी भी है जो जड़ स्वरूप पुरुष को अपनी चेतना से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है। साथ ही संसार की सार्थकता सिद्ध करती है। नारी में सृजन की पूर्णता है उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असंभव है। समाज रचना, सामाजिक संस्कारों में नारी के माँ, प्रेयसी, पुत्री एवं पत्नि अनेक रूप हैं । वह समपरिस्थितियों में देवी है तो विषम परिस्थितियों में दुर्गा भवानी है। वह समाज रूपी गाड़ी का एक पहिया है, जिसके बिना समग्र सामजिक जीवन पंगु है।
विषय का प्रवर्तन करते हुए समुत्कर्ष पत्रिका के परामर्शद् तरुण कुमार शर्मा ने बताया कि ज्ञान और विद्वता के क्षेत्र की ही बात क्यों करें भारत में प्राचीन काल से ही विज्ञान, शौर्य, साहस और पराक्रम में भी भारतीय नारी इतनी बढ़ी-चढ़ी थी कि उसे अबला कहना हास्यास्पद लगता है। दुर्गा भगवती चरण बोहरा की क्रांति कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि शौर्य और पराक्रम ही क्यों ?धर्म और समाज, संस्कृति की सेवा के लिए भी नारियों ने बढ़ चढ़ कर अनुपम उदहारण प्रस्तुत किए हैं।
आदित्य पांडे ने माता के स्नेहाशीष की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि बात नारी शक्ति की प्रतिभा प्रमाणित करने और स्वयं विकसित होने तक सीमित नहीं है। प्रतिभा से कहीं अधिक उनका त्याग है। जहाँ उन्होंने स्वयं को पर्दे के पीछे रखकर अपने पतियों को समाज निर्माण, आत्मनिर्माण में सहायता दी। धर्मपत्नी के रूप में उन्होंने अपने पतियों को अधिक योग्य बनाने और महान कार्य सम्पन्न करने में महत्वपूर्ण योगदान प्रस्तुत किए।
संचालन करते हुए संदीप आमेटा ने स्वामी विवेकानंद के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि सभी उन्नत राष्ट्रों ने स्त्रियों को समुचित सम्मान देकर ही महानता प्राप्त की है। जो देश और राष्ट्र स्त्रियों का आदर नहीं करते, वे कभी बड़े (उन्नत) नहीं हो पाये हैं और न भविष्य में ही कभी उन्नत होंगे।उन्होंने पुरुष को मर्यादा में रहते हुए नारी को अपने सदियों के दकियानूसी सोच से आजाद करने की आवश्यकता बताई।
शिवलाल नायक ने आह्वान करते हुए कहा कि महिलाओं पर लगे हुए अप्रासंगिक हो चुके प्रतिबन्ध तुरंत हटाये जावें। उनके संबंध में अपनी मान्यता और दृष्टिकोण में बदलाव लाया जाए तथा इस तरह की व्यवस्था बनायी जाए जिससे स्त्रियाँ निःसंकोच अपनी क्षमता और प्रतिभा को विकसित कर सके। इस ओर प्रयत्नशील कदम, इतिहास का रुख अपनी ओर मोड़ सकते हैं और भारत पुनः अपनी उसी गौरव गरिमा को अर्जित कर सकता है।
शिव शंकर खंडेलवाल हरिदत्त शर्मा ने भी इस अवसर अपने विचार व्यक्त किए। समुत्कर्ष के उप सम्पादक गोविंद शर्मा ने आभार व्यक्त किया ।
इस अवसर पर कमला शर्मा, जीवन लाल जैन, डॉ. नरेन्द्र टॉक, अनुराग मेड़तवाल, पप्पू लाल प्रजापत, कविता शर्मा, प्रवीण, विद्यासागर, गोपाल लाल माली, गिरीश चौबीसा, जीवन मेघवाल, पुष्कर माली, वरतन्तु पांडे, सत्यप्रिय आदि उपस्थित थे ।
लोकेश जोशी