पहली बार वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में स्टेम कोशिकाओं (पीएससी) का उपयोग करके मानव ग्रास नली अथवा आहार नली के एक लघु कार्यात्मक संस्करण को विकसित करने में सफलता हासिल की है।
अमेरिका में सिनसिनाटी चिल्ड्रन सेंटर फॉर स्टेम सेल और ऑर्गनाइओड मेडिसिन (क्यूस्टॉम) में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस प्रयोग से व्यक्तिगत परेशानियों से राहत मिल सकती हैं। इस सफलता से जीआई विकारों का इलाज करने के लिए नई पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है।
लाभ
वैज्ञानिकों द्वारा कृत्रिम ग्रास नली के विकास से जन्मजात दोष जैसे एसोफेजियल एट्रेसिया, ईसीनोफिलिक
एसोफैगिटिस और बैरेट मेटाप्लासिया आदि के इलाज में लाभ हो सकता हैं। इसके अतिरिक्त कृत्रिम रूप से विकसित इस नलिका को व्यक्तिगत रोगियों में ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।
ग्रास नली
ग्रासनली (ओसोफैगस) लगभग 25 सेंटीमीटर लंबी एक संकरी पेशीय नली होती है जो मुख के पीछे गलकोष से आरंभ होती है। सीने से थोरेसिक डायफ्राराम से गुजरती है और उदर स्थित हृदय द्वार पर जाकर समाप्त होती है। ग्रासनली, ग्रसनी से जुड़ी तथा नीचे आमाशय में खुलने वाली नली होती है। इसी नलिका से होकर भोजन आमाशय में पहुंच जाता है।
ग्रासनली के शीर्ष पर ऊतकों का एक प्रवेश द्वारा होता है जिसे एपिग्लॉटिस कहते हैं जो निगलने के दौरान के ऊपर बंद हो जाता है जिससे भोजन श्वासनली में प्रवेश न कर सके। चबाया गया भोजन इन्हीं पेशियों के क्रमाकुंचन के द्वारा ग्रासनली से होकर उदर तक पहुंच जाता है। ग्रासनली से भोजन को गुजरने में केवल सात सेकंड लगते हैं और इस दौरान पाचन क्रिया नहीं होती।