ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस अक्सर अपने शिष्यों को यह कहानी सुनाया करते थे- एक बार देश के किसी भाग में अकाल पड़ गया। वहाँ के किसानों को अपने खेतों की चिन्ता होने लगी। वर्षा के अभाव में सिंचाई कैसे हो, इसकी व्यवस्था में सभी लग गए। किसानों ने दूर स्थित नदी का पानी अपने खेतों तक लाने के लिए नहरें खोदने का काम शुरू कर दिया।
एक किसान ने यह संकल्प किया कि वह खुदाई का काम तब तक नहीं रोकेगा जब तक नदी से खेतों तक नहर तैयार नहीं हो जाती। वह कुदाल-फावड़ा लेकर नहर खोदने के काम में जुट गया। दिन चढ़ते नहाने का समय हो गया, तब उसकी पत्नी ने पुत्री को उसे बुलाने भेजा। पुत्री ने किसान से कहा-‘‘पिताजी, बड़ी देर हो गई है। अब आप पहले तेल की मालिश कर लो, फिर चलकर नहा लो।’’ यह सुनकर किसान जोर से बोला- ‘‘तुम जाओ। मुझे अभी बहुत काम करना है। मैं काम बीच में नहीं छोड़ सकता।’’ पुत्री लौट गई।
ऐसे ही खुदाई करते-करते आधा दिन बीत गया, तब किसान की पत्नी स्वयं वहाँ आयी और बोली- ‘‘तुम स्नान क्यूँ नहीं कर लेते? घर पर भोजन भी ठंडा हो रहा है। तुम इस काम में सब कुछ भूल रहे हो। नहर का बाकी काम तुम कल भी तो कर सकते हो।’’ किसान यह सुनकर आवेश में कुदाल उठाये पत्नी के सामने आकर चिल्लाता है- ‘‘क्या तुममें थोड़ी भी अक्ल नहीं है। यहाँ बरसात नहीं हुई है, चारों ओर अकाल पड़ा है। मेरे खेतों में फसल मर रही है। सारी फसल नष्ट हो गई तो बच्चे क्या खाएँगे? तुम सब लोग भूखे मर जाओगे। … ……..मैंने आज संकल्प किया है कि खेतों तक पानी पहुँचाने से पहले मैं नहाने-खाने आदि किसी बात का विचार नहीं करूंगा।’’ पत्नी उसका दृढ़ निश्चय और आवेश देखकर घर लौट गई।
अन्ततः पूरे दिन के अथक-कमरतोड़ परिश्रम के उपरान्त शाम होने तक किसान ने नहर का काम पूरा कर लिया। अब वह कुछ देर वहीं किनारे बैठकर नदी से खेत की ओर कल-कल की मधुर ध्वनि के साथ बहते निर्मल पानी को देखता रहा। अब वह शांत और प्रसन्न था।
वह घर लौटा और वहीं दूसरी ओर एक अन्य किसान भी नहर खोदने का काम कर रहा था। उसकी भी पत्नी वहाँ आई और बोली- ‘‘बड़ी देर हो गई है, अब घर चलो। स्नान-भोजन आदि करके थोड़ा विश्राम भी कर लो। नहर का काम कल कर लेना, अभी क्या जल्दी है।’’ वह किसान बिना किसी विरोध के कुदाल-फावड़े एक ओर रखकर तुरन्त पत्नी के साथ चल दिया- ‘‘चलो, तुम कह रही हो तो घर चलते हैं।’’ यह दूसरा किसान कभी भी नहर का काम पूरा नहीं कर सकेगा, वह कभी भी अपने खेतों तक नदी का पानी नहीं पहुँचा सकेगा। रोज उसकी पत्नी जैसा कोई बहाना मिल जाएगा और वह काम छोड़कर चल देगा।
अपने निश्चय की क्रियान्विति के प्रति प्रतिबद्धता की कमी ही ऐसे लोगों की विफलता का कारण बनती है। अपने कर्म के प्रति निष्ठा-प्रतिबद्धता रखते हुए लगातार काम करने वाला व्यक्ति ही सफल होता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में कुछ महत्वाकांक्षाएँ होती हैं, जीवन ध्येय होते हैं। किन्तु केवल बड़ी महत्वाकांक्षा बना लेने से ही कुछ नहीं होता।
इस महत्वाकांक्षा को हासिल करने के लिए, अपने ध्येय को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है – एक क्रमबद्ध सुदृढ़ योजना और फिर योजना की क्रियान्विति के लिए प्रतिबद्ध होकर निष्ठापूर्ण कर्म। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं- ‘‘काम, काम, काम- बस इसे ही अपना आदर्श बना लो। …साहस भरकर काम शुरू करो। धैर्य ओर सतत् कर्म-यही केवल मात्र मार्ग है। चल पड़ो, याद रखो-धैर्य, पवित्रता, निडरता और सतत् कर्म।’’ यही है सफलता का सूत्र।
उमेश कुमार चैरसिया