पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही मानव नई-नई बीमारियों से जूझने के लिए विवश हुआ है। स्वच्छ प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छंद विचरण करता मानव हालांकि आज के आम व्यक्ति के मुकाबले लगभग तीन गुना अधिक खाता था और उसकी ऊर्जा खपत भी वर्तमान से बहुत ज्यादा थी।
तीन गुना ऊर्जा की खपत उनके लिए आसान थी क्योंकि वे काम, भोजन और पानी की तलाश में निरंतर भटकते (चलते) रहते थे। यह श्रम ही था कि वे कभी मोटापे या मोटापा जनित शारीरिक विकारों से क्लांत नहीं हुए।
प्रकृति के विनाश के जरिए अपने विकास का सपना भौतिक सुविधाओं की दृष्टि से भले ही पूरा हो गया आभासित होता है मगर वस्तुतः इस तथाकथित विकास से जुटी भौतिक सुविधाओं का सुखद या आनंददायी तथा सुकूनदायक उपभोग एक दुःस्वप्न भी सिद्ध हुआ है।
पैसा है मगर मोटापा है, हृदय रोग है, पेट रोग है, मधुमेह है, तनाव है। भोजन है, भूख नहीं। भोजन है मगर डॉक्टरी प्रतिबंध जबर्दस्त हैं। फास्ट, जंक और न जाने कैसे-कैसे तैयार भोजनों, शारीरिक श्रम के अभाव में तथा आधुनिक जीवन शैली के चलते कब्ज नामक बीमारी ने लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को येन-केन प्रकारेण अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
तमाम तरह के चूर्णों के बावजूद राहत की चाहत अपूर्ण ही रह जाती है। नई-नई दवाओं के निर्माता अखबारों में कब्ज के रोगियों को राहत के बेहतरीन सब्जबाग दिखाने वाले विज्ञापनों का सहारा लेकर भले ही अपने व्यापार को खूब फला-फूला देख रहे हों मगर रोगियों की हालत कुछ ऐसी बनी रहती है- ‘राही (दवाएं) बदल गए हैं, मगर रास्ता (रोग) है वही।‘
प्रदूषण के बीच अच्छी सेहत के कुछ प्राकृतिक इलाज जानिए। यहां चंद प्राकृतिक तरीके दिए जा रहे हैं, जो रोगियों को शीघ्र राहत दे सकते हैं –
सुबह-सुबह बिना मुंह (कुल्ला किए बिना) धोए, एक से चार गिलास पानी पीना शुरू करें।
शौच और मुख मार्जन से निपटकर 5-7 मिनट के लिए कुछ शारीरिक कसरत (शरीर संचालन) करें।
दोनों समय के भोजन में सलाद (खीरा ककड़ी, गाजर, टमाटर, मूली, पत्ता गोभी, शलजम, प्याज, हरा धनिया) थोड़ी मात्रा में ही सही, अवश्य शामिल करें।
प्रदूषण के इस नवयुग में दवाइयां कब्ज से निजात कदापि नहीं दिला सकती हैं। यह बात जेहन में गहराई से उतार लीजिए। लेकिन यही कुछ प्राकृतिक तरीके आपको हमेशा स्वस्थ रख सकते हैं।
डॉ. पूजा शर्मा