देश के नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने हेतु अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार कहते हैं। जनतांत्रिक प्रणाली में मतदान का बहुत महत्व है। इसके माध्यम से जनता शासन-व्यवस्था में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकती है। एक स्वच्छ और मज़बूत सरकार का निर्माण तभी सम्भव है, जब मतदाता अधिकाधिक संख्या में मतदान करें। लोकतन्त्र की सुदृढ़ता हेतु आदर्श भी यही है।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। जिस देश में जितने अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त रहता है, उस देश को उतना ही अधिक जनतांत्रिक समझा जाता है। हमारा देश संसार के जनतांत्रिक देशों में सबसे बड़ा है क्योंकि हमारे यहाँ मताधिकार प्राप्त नागरिकों की संख्या विश्व में सबसे बड़ी है। लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत जितने अधिकार नागरिकों को मिलते हैं, उनमें सबसे बड़ा अधिकार है वोट देने का अधिकार। इस अधिकार को पाकर ही हम मतदाता कहलाते हैं। वही मतदाता जिसके पास यह ताकत है कि वो सरकार बना सकता है, सरकार गिरा सकता है और तो और स्वयं सरकार बन भी सकता हैं।
निर्वाचन लोकतंत्र का आधार स्तम्भ हैं। चुनाव या निर्वाचन लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके द्वारा जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। मतदान करने में सक्षम कई लोग इस विचार से मतदान नहीं करते कि मतपेटी या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के माध्यम से अपनी राय व्यक्त करने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह हमारी राजनीतिक प्रक्रिया के पथ भ्रष्ट हो जाने की वजह से पैदा निराशा और उदासीनता के कारण एक पराजित दृष्टिकोण हो सकता है। लेकिन मतदाता द्वारा डाला गया हर मत आशा और विश्वास का प्रतीक होता है, जिसे हम उम्मीदवार में व्यक्त करते हैं। जिसके बारे में हम मानते हैं कि वह एक सकारात्मक अंतर ला सकता है। लोकतंत्र में अपना मत न डालना अपनी जिम्मेदारी से भागना हो सकता है।
सवाल तो यह भी है कि क्या हमारे देश में वोट देने का अधिकार अनिवार्य नहीं करना चाहिए? विश्व के कई देशों में वोट देने का अधिकार अनिवार्य है। क्या भारत जैसे सर्वाधिक युवा मतदाता वाले देश को इस पहल का अनुसरण करने के लिए आगे नहीं आना चाहिए? अर्जेन्टीना, आस्ट्रिया, स्विट्ज़रलैंड, इटली, तुर्की, आस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, बेल्ज़ियम, चिली, कांगो, इक्वेडोर, फिजी, पेरू, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलीपीन्स, मैक्सिको, उरुग्वे, दक्षिण अफ्रीका, बोलीविया और मिस्र जैसे कई देशों में मतदाताओं के लिए मत देना अथवा मतदान-स्थल पर उपस्थित होना अनिवार्य है। यदि मतदाता ऐसा नहीं करता तो उसे ज़ुर्माना देना पड़ता है अथवा सामुदायिक सेवा करनी पड़ती है। ज़ुर्माना या सामुदायिक सेवा न देने पर क़ैद भी हो सकती है।
मतदान केवल एक अधिकार नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। मतदान एक आध्यात्मिक कृत्य भी है। आप अच्छे विश्वास में एक व्यक्ति (उम्मीदवार) को आपके और दूसरों के जीवन को बदलने की शक्ति से संपन्न कर रहे हैं। हमारा जीवन इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि हम किस प्रकार मतदान करते हैं। आपका मत आतंकवाद, युद्ध, स्वास्थ्य, शिक्षा, जलवायु परिवर्तन और हर व्यक्ति के जीवन को छूने वाले अनेक विषयों पर नीति को तय करने में मदद कर सकता है। अतः लोकतंत्र में मतदान करना एक आध्यात्मिक जिम्मेदारी है। यदि हम आध्यात्मिक मूल्यों से जीने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो हमें मतदाताओं को मतदान स्थल पर उपस्थित होने के लिए प्रेरित करना चाहिये।
भारत जैसा युवा देश जिसकी 65 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम है। देश के युवाओं की जिम्मेदारी बनती है कि वो अशिक्षित लोगों को मत का महत्व बताकर उनको मत देने के लिए बाध्य करें। लेकिन यह विडंबना है कि हमारे देश में मत देने के दिन लोगों को जरूरी काम याद आने लग जाते हैं। कई लोग तो मत देने के दिन अवकाश का फायदा उठाकर परिवार के साथ पिकनिक मनाने चले जाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी है जो घर पर होने के बावजूद भी अपना वोट देने के लिए मतदान केन्द्र तक जाने में आलस करते हैं। इस तरह अजागरूक, उदासीन व आलसी मतदाताओं के भरोसे हमारे देश के चुनावों में कैसे सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सकेंगी? साथ ही कुछ तबका ऐसा भी है जो प्रत्याशी के गुण न देखकर धर्म, मजहब व जाति देखकर अपने वोट का प्रयोग करता हैं। यह कहते हुए बड़ी ग्लानि होती है कि मतदान के दिन स्वार्थी लोग अपना मत संकीर्ण स्वार्थ के चक्कर में बेच देते हैं। यही सब कारण है कि हमारे देश के चुनावों में से चुनकर आने वाले कई नेता दागी और अपराधी किस्म के होते हैं। जिन्हें सही से बोलना और लिखना भी नहीं आता। ऐसे लोग जो अयोग्य है और वे गलत तरीकों से जीतकर योग्य लोगों पर राज करते हैं।
यह हमारे लोकतंत्र की कमी है कि सही और योग्य लोग जो व्यवस्था परिवर्तन करने का जज़्बा रखते है, वे जब चुनाव लड़ते है तो मतदाताओं की ऐसी उदासीनता मिश्रित मिलीभगत के चलते वे हार जाते हैं। हमारे देश के लोग एक ओर अपनी बेटी को किसी को देने से पहले तो पूरी तहकीकात करते हैं, लेकिन इसके विपरीत अपना मत ऐसे ही किसी को भी उठाकर दे देते हैं। मत भी तो बेटी समान ही है ना? हम तब तक अच्छी व्यवस्था खड़ी नहीं कर पाएंगे जब तक हम मत का महत्व और अपने मतदाता होने के फर्ज को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा नहीं देते हैं।
अंततः हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम किसी भी प्रलोभन में नहीं फंसते हुए, अपने मत का ‘दान’ नहीं करेंगे बल्कि अपने मत का प्रयोग स्वविवेक के आधार पर पूर्ण निष्पक्षता एवं निष्ठा के साथ सही जननायक चुनने में करेंगे।