” राष्ट्र और मनुष्य के स्वाभिमान की जननी है स्वतंत्रता “
उदयपुर, 11 अगस्त। समुत्कर्ष समिति द्वारा मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में “ स्वतन्त्रता है अनमोल ” विषयक 52 वीं मासिक विचार गोष्ठी का आयोजन फतह स्कूल में किया गया । गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता यानी प्रतिष्ठा और समानता का दर्जा, आदर और पहचान का वातावरण, विकास और उपलब्धि की उंचाईयों में उन्मुक्तता का माहौल, न कोई कृत्रिम बाधा और न निरंकुशता का कोई अवरोध।
विषय का प्रवर्तन करते हुए समुत्कर्ष के परामर्शद तरुण शर्मा ने बतायाकि स्वतंत्रता में मूल शब्द ‘तन्त्र‘ है। इसमें ‘स्व’ उपसर्ग तथा ‘ता’ प्रत्यय लगा हुआ है, इसका अभिप्राय है कि अपने नियमों व उपनियमों में आबद्ध मुक्ति। स्वतंत्रता व्यक्ति के व्यकित्व के सम्पूर्ण एवं प्राकृतिक विकास हेतु अति आवश्यक है।स्वतंत्रता के दो यंत्र आत्मानुशासन एवं आत्मनियंत्रण कहे जाते हैं। स्वतंत्रता अर्थात बिना रोक-टोक अपनी शक्तियों का उचित उपयोग पर वह दूसरों की क्रियाओं में बाधा न डाले। स्वतंत्रता का सही उपयोग के लिये बोधगम्यता एवं विचारशीलता अति आवश्यक है, अर्थात् विचारशीलता स्वतंत्रता की पहली सीढ़ी है। इसीलिए प्रत्येक भारतीय के लिए स्वतंत्रता अनमोल भी है।
बिक्री कर अधिकारी ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि स्वतंत्रता किसी भी राष्ट्र और मनुष्य के स्वाभिमान की जननी होती है l स्वतंत्रता प्रत्येक प्राणी की भावना, शक्ति एवं उत्साह को सदैव जागृत रखती है, जबकि परतंत्रता में सभी शक्तियां निर्बल एवं प्रभावहीन हो जाती है। स्वतंत्रता में व्यक्तित्व का विकास होता है, प्रतिभायें सही दिशा में अपना आकार लेने में समर्थ होती है, जबकि परतंत्रता में प्रतिभायें कुन्द पड़ जाती हैं। स्वतंत्रता वरदान है, परतंत्रता अभिशाप।
प्रधानाचार्य नरेेेेन्द्र टॉक के अनुसार स्वतंत्रता के मायने तब और ज्यादा प्रबल हो जाते हैं जब व्यक्ति सम्पूर्ण ईमानदारी, जिम्मेदारी, समझदारी और दुनियादारी का बोध करते हुये स्वतंत्रता का सही इस्तेमाल करता है। स्वतंत्रता के साथ-साथ जरूरी है अपने भीतर स्व-अनुशासन का भाव लाया जाये, ताकि सत्य के दायरे में सिमट कर उत्तरदायित्व का समग्र निर्वहन हो सके। स्वतंत्रता का क्षितिज व्यापक होना चाहिये और इसकी परिधि विस्तृत एवं उदार होनी चाहिये, तभी स्वतंत्रता का अभिप्राय सिद्ध होगा।
साहित्यकार तरुण कुमार दाधीच ने कहा कि भारत का स्वतंत्रता दिवस कि कहानी बहुत बड़ी है न जाने कितने लोगों ने इस दिन के लिए भारतीय स्वतंत्रता दिवस के लिए अपनी जान दी, शहीद हुए और हमें आज एक स्वतंत्र देश प्रदान किया| खुद तो मौत को गले लगाया और हमें एक आजाद देश, अनमोल तोहफे के रूप में दिया है. आज भी उन शहीदों कि याद में आँखों से आंसू आ जाते है जिन्होंने भारत कि आजादी के लिए अपनी जान दी थी|
डॉ उदय प्रकाश सिंह ने बताया कि अभ्युदय को स्थायी वास्तविकता का आवरण प्रदान करती है स्वतंत्रता, जबकि परतंत्रता में व्यक्ति जीवन के वास्तविक सुख से ही वंचित रह जाता है। परतंत्रता में मनुष्य की सहज शक्तियों का विकास अवरूद्ध हो जाता है, मनुष्य सुख का एहसास नही कर पाता और कदापि चिंता मुक्त भी नही। इन सन्दर्भों में स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं जा सकता l
गोष्ठी में रितेश सिरोया, गोपाल माली , मनीष परमार, नरेन्द्र आमेटा ने भी अपने विचार व्यक्त किये । समुत्कर्ष के सहसम्पादक गोविन्द शर्मा ने आभार व्यक्त किया ।
इस अवसर पर शिव शंंकर खण्डेलवाल, गणपत लाल, विनोद शर्मा, हेमन्त जोशी, राकेश शर्मा, प्रवीण, विद्य्या् सागर , संजीव सिंह भाटी आदि उपस्थित थे ।
समुत्कर्ष समिति द्वारा 52 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी संपन्न l