युवाओं में संकल्प शक्ति जाग्रत् होनी ही चाहिए, क्योंकि इसी में युवावस्था की सही व सार्थक परिभाषा निहित है। संकल्प शक्ति आध्यात्मिक ऊर्जा है। यह आत्मा का वर्चस् और व्यक्तित्व में स्फुरित होने वाला दैवी चमत्कार है। इसके बलबूते जीवन को परिवर्तित व रूपान्तरित करके अनेकों आश्चर्यों को साकार किया जा सकता है। असम्भव को सम्भव करने वाली महाऊर्जा यही है। युवा जीवन में यह विकसित और क्रियाशील हो जाये तो हर सपने का साकार होना सम्भव है। यह आंतरिक दृढ़ता, स्थिरता व एकाग्रता का समन्वित रूप है।
अंतस् की समस्त शक्तियों की दृढ़ व एकाग्र सघनता जब चरम पर पहुँचती है तब व्यक्तित्व में संकल्प शक्ति के संवेदन अनुभव होते हैं। संकल्प शक्ति के अभाव में युवाओं में बहकाव-भटकन बनी रहती है। वे सोचते बहुत हैं, पर कर कुछ खास नहीं पाते हैं। सपने तो उनके मनों में बहुत होते हैं, पर उन्हें साकार करने की योजनाओं को क्रियान्वित कर पाना इन युवाओं के वश में नहीं होता।
एक अजीब सा ढीला-ढालापन, संदेह, दुविधा, असमंजस, भ्रम की मनःस्थिति इन्हें घेरे रहती है। अधिक देर तक कोई काम करना न तो इनका स्वभाव होता है और न ऐसा करने की इनकी सामथ्र्य होती है। संकल्प शक्ति के अभाव वाले व्यक्ति बड़ी जल्दी हताश-निराश होने वाले होते हैं। ये बिना संघर्ष किये ही अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। अंतिम साँस तक किसी महान् उद्देश्य के लिए संघर्ष करना और संघर्ष करते हुए स्वयं को मिटा देना, इनके बस की बात नहीं। यही वजह है कि नाकामी व असफलता इन्हें घेरे रहती है। जिन्हें इस तरह के अनुभव हो रहे हैं, उन्हें अपनी स्थिति का अनुमान लगा लेना चाहिए। एक बार यदि वास्तविकता का आँकलन हो जाये, तो फिर अंतस् में संकल्पशक्ति के जागरण के प्रयास किये जा सकते हैं। इस प्रयास की पहली शुरुआत सकारात्मक सोच है। अपने मन में इस सूत्र का मंत्र की तरह अहसास करना कि मैं कर सकता हूँ। मैं सब कुछ करने में समर्थ हूँ। यह आस्था अंतस् में पनपनी ही चाहिए। जो नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक आस्था बनाये रखने का बल रखते हैं, उनमें संकल्प शक्ति का आसानी से विकास हो जाता है। जो इस प्रयास में जुटे हैं, उन्हें चाहिए कि वे अपनी सकारात्मक सोच के विरोधी भावों को कोई महत्त्व न दें। किसी तरह के संदेह, भ्रम न पालें, क्योंकि इनसे मानसिक शक्तियाँ बँटती-बिखरती एवं बर्बाद होती हैं। जिन युवाओं ने यह बर्बादी रोक ली, वे बड़ी आसानी से संकल्प शक्ति का विकास एवं इसके प्रयोग कर सकते हैं। किसी ने सही कहा है कि ‘हम मंजिलों की बातें मंजिलों पर कर लेंगे। अभी तो हमें चट्टानों में रास्ता बनाना है। जिन्दा रहना है तो कारवाँ बनाना है। जमीं की बस्तियों पर आसमाँ बनाना है।’
संकल्प विकसित हो तो सम्भावनाएँ स्वयं साकार होने लगती हैं। जो डॉ. भारती ने किया, वह प्रत्येक युवक-युवती के द्वारा किया जाना सम्भव है। जो इस सत्य को अनुभव करना चाहते हैं, उन्हें ध्येय वाक्य बार-बार दुहराना चाहिए कि जीवन की अंतिम साँस के पहले न तो हार माननी है और न संघर्ष को विराम देना है। शरीर, प्राण, मन एवं आत्मा की सभी शक्तियों को अपने संकल्प एवं सदुद्देश्य के लिए न्यौछावर कर देना है। संकल्प एवं संघर्ष की रासायनिक प्रक्रिया है ही कुछ ऐसी, जिससे प्रत्येक युवा व्यक्तित्व महर्षि दधीचि की तरह बन सकता है। उसकी अस्थियाँ भी महावज्र में रूपान्तरित हो सकती हैं। जिससे सभी विरोधी एवं आसुरी शक्तियों का महासंहार सम्भव है। संकल्प के लिए संघर्ष और संघर्ष से सृजन की राह पर चलने वाले युवा ध्यान रखें कि उन्हें स्वयं को गढ़ने के साथ औरों को गढ़ने में भी सहायक बनना है।