” भारत में शरणार्थी समस्या : एक अकल्पित आघात “
उदयपुर,14 अक्टूबर। समुत्कर्ष समिति द्वारा मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में ” घुसपैठ : एक राष्ट्रीय समस्या ” विषयक 43 वीं मासिक विचार गोष्ठी का आयोजन फतह स्कूल में किया गया ।
विषय का प्रवर्तन करते हुए समुत्कर्ष पत्रिका के सम्पादक रामेश्वर प्रसाद शर्मा ने कहा कि एशिया क्षेत्र में शरणार्थियों की सबसे बड़ी शरण स्थली भारत बन गया है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 2 लाख से ज्यादा शरणार्थी रहते हैं। इन्हें वोट का अधिकार छोड़कर एक भारतीय नागरिक के सभी अधिकार मुहैया हैं। उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र व जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में भारी संख्या में आसपास के देशों से आये लाखों शरणार्थियों ने अपना मुकम्मल ठिकाना बना लिया है, और सम्बन्धित राज्य सरकारें, अपने वास्तविक नागरिकों के हक व सुविधाओं में कटौती कर उनका पोषण कर रही है।
यही खेल असम में कई-कई साल तक चलता रहा । सरकारें आती-जाती रहीं पर समस्या बढ़ती गयी और असल मुद्दा ज्यों का त्यों बना रहा। केन्द्र व राज्यों की सरकारों ने इस समस्या को अपनी राजनैतिक सफलता की सीढ़ी के बतौर लिया है और इसका खामियाजा अब भारत की आम जनता भुगत रही है।
किसी देश के भौगोलिक संसाधनों पर , उस देश में रह रहे समाज का पहला अधिकार है । मानवीय आधार पर शरणार्थियों की सहायता जो की भारत वर्षो से करता आया है,एक हद तक ही उचित है । शरणार्थियों का अनियंत्रित रेला देश के लोगो के लिए एक नयी मुसीबत की आहात लेकर आया है ।
संचालन करते हुए संदीप आमेटा ने बताया कि घुसपैठ से देेश का जनसंख्या संंतुलन बिगड़ रहा है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हालात बिल्कुल अलग हैं , सीरिया, लीबिया, अफ गानिस्तान, जोर्डन, इराक आदि तमाम अशांत व युद्धग्रस्त देशों से पलायनित करोड़ों लोग इटली, स्पेन, माल्टा, ग्रीस, साइप्रस आदि देशों में अवैध रूप से बतौर शरणार्थी रह रहे हैं और अंततोगत्वा इन देशों की अर्थव्यवस्था के लिये नासूर बनते जा रहे हैं। इसके अलावा शरणार्थियों की स्थिति को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व इसी तरह की अन्य एजेंसियां भी गाहे बगाहे हल्ला मचाती रहती हैं। जबकि स्थानीय देशवासियों का मानना है कि मानवाधिकार के लिए रोने वालों को पहले हमारे देश के नागरिकों के बारे में सोचना चाहिए। क्या दो वक्त का खाना हमारे देश के नागरिकों का मानवाधिकार नही है? जब हमारे देश की जरूरतें पूरी हो जाएगी, हम घुसपैठियों के बारें में जरूर सोचेंगे।
वक्ताओं ने कहा कि पुराने अनुभवों को ध्यान रखते हुए रोहिंग्या पर सरकार हमदर्दी दिखा देश एक और विभाजन की आवाज क्यों बुलंद करवाए। आतंकी आका और पाकिस्तान रोहिंग्या की आंड़ में पूर्वी पाकिस्तान के विभाजन का बदलना लेना चाहते हैं। जिसे भारत कभी कामयाब नहीं होने देगा। भारत से रोहिंग्या मुसलमानों को निकालना भी एक समस्या है। आखिर उन्हें कहां और किस देश में भेजा जाएगा। यह भी एक बड़ा सवाल है। लेकिन शरणार्थी समस्या से लिए आज के संदर्भ में सबसे अधिक जिम्मेदार इस्लामिक आतंकवाद रहा है। इसकी वजह से शरणार्थी समस्या वैश्विक संकट बन गयी है।
आतंकवाद के खिलाफ दुनिया के मुल्कों को एक मंच पर आना होगा। संयुक्त राष्ट को आतंकवाद से लड़ने के लिए वैश्विक सेना बनानी होगी। वक्त रहते अगर इसे संभाला नहीं गया तो आने वाला दौर और कठिन होगा। रोहिंग्या पर भारत सरकार की तरफ से उठाया गया कदम देश की आंकरित सुरक्षा से जुड़ा सवाल है। इस पर कोई तर्क नहीं किया जाना चाहिए।
गोष्ठी में तरुण कुमार दाधीच , हरिदत्त शर्मा ने विचार व्यक्त किए ।
गोष्ठी में राकेश शर्मा , अर्जुन सिंह , गोपाल साहू, लोकेश जोशी, विद्यासागर, कविता शर्मा आदि उपस्थित थे ।