समुत्कर्ष समिति द्वारा मासिक विचार गोष्ठी के क्रम में ‘‘समरसता का महापर्व : कुम्भ’’ विषयक 59 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन उदयपुर में किया गया। गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि कुम्भ को भारतीय संस्कृति को महापर्व कहा गया है। प्रयागराज के इस संगम में कुम्भ के समय कई परम्पराओं, भाषाओं और लोगों का भी अद्भुत संगम होता है। संगम तट पर स्नान और पूजन का तो विशिष्ट महत्व है ही, साथ ही कुम्भ का बौद्धिक, पौराणिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक आधार भी है। एक प्रकार से कहें तो कुम्भ स्नान और ज्ञान का भी अनूठा संगम सामने लाता है। विषय का प्रवर्तन करते हुए समुत्कर्ष पत्रिका के सम्पादक वैद्य रामेश्वर प्रसाद शर्मा ने कहा कि खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं।
मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को ‘कुम्भ स्नान-योग’ कहते हैं। ग्रहों की स्थिति हिमालय से बहती गंगा के जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है कि अपनी अंतरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। कुम्भ का वर्णन करते हुए गोपाल माली ने कहा कि प्रयागराज में आयोजित होने वाला यह पवित्र कुम्भ मेला देश की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक विविधताओं को और पोषित व पल्लवित करता है, साथ ही सामाजिक समरसता, एकता और सद्भाव बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
शिवशंकर खंडेलवाल ने संचालन करते हुए कहा कि सेवा-सत्कार और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए भी कुम्भ एक बहुत बड़ा अवसर होता है। पवित्र कुम्भ का रंग ही ऐसा होता है, जो हर तरह के पर्यटकों को अपनी ओर सहज ही आकर्षित करता है। जो लोग भारत दर्शन के लिए आना चाहते हैं, उन्हें पूरे भारत की विविधता एक जगह सिमटी हुई मिल जाती है और जो लोग आध्यात्मिक टूरिज्म पर आना चाहते हैं, उनके लिए तो इससे भव्य आयोजन कोई हो ही नहीं सकता।
समुत्कर्ष के परामर्शद् तरुण शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी उत्सव के आयोजन में भारी जनसम्पर्क अभियान, प्रोन्नयन गतिविधियां और अतिथियों को आमंत्रण प्रेषित किये जाने की आवश्यकता होती है, जबकि कुंभ विश्व में एक ऐसा पर्व है जहाँ कोई आमंत्रण अपेक्षित नहीं होता है तथापि करोड़ों तीर्थयात्री इस पवित्र पर्व को मनाने के लिये एकत्र होते हैं। हरिदत्त शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि प्रयाग में वैसे तो हर 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है लेकिन इस बार प्रत्येक 12 वर्ष के 12 चक्र पूर्ण हो चुके हैं अर्थात् पूरे 144 वर्षों बाद आ रहा हैं महाकुंभ।
पौष मास की पूर्णिमा से प्रारंभ हुए प्रयाग कुंभ का इसलिए विशेष महत्व है। मानव मात्र का कल्याण, सम्पूर्ण विश्व में सभी मानव प्रजाति के मध्य वसुधैव कुटुम्बकम् के रूप में अच्छा सम्बन्ध बनाये रखने के साथ आदर्श विचारों एवं गूढ़ ज्ञान का आदान प्रदान कुंभ का मूल तत्व और संदेश है जो कुंभ पर्व के दौरान प्रचलित है। कुंभ भारत और विश्व के जन सामान्य को अविस्मरणीय काल तक आध्यात्मिक रूप से एकताबद्ध करता रहा है और भविष्य में ऐसा किया जाना जारी रहेगा।
लोकेश जोशी