ऐसा कहा गया है कि किसी को काम करने के लिए चाहे वे आध्यात्मिक हो या फिर सांसारिक काम, कुशलता और योग्यता जरूरी है और इस कुशलता और योग्यता को पाने के लिए आपको जिम्मेदार होना पड़ेगा। केवल एक ज़िम्मेदार व्यक्ति ही काम करने के लायक है। कितना सुन्दर सन्देश दिया गया है इसमें। ‘‘रक्षाबंधन’’ रक्षा$बंधन दो शब्दों से मिलकर बना है। अर्थात् एक ऐसा बंधन जो रक्षा का वचन लें। रक्षा बंधन का पर्व विशेष रुप से उत्तरदायित्व स्वीकारने, भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है। एक ऐसा बंधन जो दो जनों को स्नेह के धागे से बांध ले। रक्षा बंधन को भाई-बहन तक ही सीमित रखना सही नहीं होगा। भाई-बहन के रिश्तों की सीमाओं से आगे बढ़ते हुए यह बंधन आज गुरु का शिष्य को, एक भाई का दूसरे भाई को, बहनों का आपस में राखी बांधना और दो मित्रों का एक-दूसरे को राखी बांधना, माता-पिता का संतान को राखी बांधना हो सकता है।
आज के परिप्रेक्ष्य में राखी केवल बहन का संबंध स्वीकारना नहीं है अपितु राखी का अर्थ है, जो यह श्रद्धा व विश्वास का धागा बंधवाता है, वह राखी बंधवाने वाले व्यक्ति के दायित्वों को स्वीकार करता है। उस संबंध को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता है। श्रावण व श्रावक के बंधन का दिन भी है रक्षाबंधन। सावन के महीने में मनुष्य पावन होता है। उसकी आत्मा ही उसका भाई है और उसकी वृत्तियां ही उसकी बहन हैं। प्रेम वासना के रूप में प्रदर्शित हो तो इंसान को रावण और प्रेम प्रार्थना के रूप में प्रदर्शित होने पर इंसान को राम बना देता है।
वर्तमान समाज में हम सब के सामने जो सामाजिक कुरीतियां सामने आ रही हैं। उन्हें दूर करने में रक्षा बंधन का पर्व सहयोगी हो सकता है। आज जब हम बुजुर्ग माता-पिता को सहारा ढूंढते हुए वृद्ध आश्रम जाते हुए देखते है, तो अपने विकास और उन्नति पर प्रश्न चिœ लगा हुआ पाते है। इस समस्या का समाधान, राखी पर माता-पिता को राखी बांधना, पुत्र-पुत्री के द्वारा माता-पिता की जीवन भर हर प्रकार के दायित्वों की जिम्मेदारी लेना हो सकता है। इस प्रकार समाज की इस मुख्य समस्या का समाधान किया जा सकता है।
‘सामाजिक समरसता’ के अर्थ का संक्षेप में अर्थ है सामाजिक समानता। यदि व्यापक अर्थ देखें तो इसका अर्थ है- जातिगत भेदभाव एवं अस्पृश्यता का जड़मूल से उन्मूलन कर लोगों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द्र बढ़ाना तथा समाज के सभी वर्गों एवं वर्णों के मध्य एकता स्थापित करना। समरस्ता का अर्थ है सभी को अपने समान समझना। सृष्टि में सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है और उनमें एक ही चैतन्य विद्यमान है इस बात को हृदय से स्वीकार करना। रक्षाबंधन के पर्व की रचना हमारे प्राचीन मनीषियों ने मानों इस दिशा में प्राक्कथन के रूप में कर दी थी। आवश्यकता है समाज के भिन्न-भिन्न मतावलंबियों लोगों रक्षाबंधन का महत्व समझा कर परस्पर प्रेम एवं सहयोग के प्रति जागरूक करने की, ताकि सामाजिक समरसता अपने अर्थ में सही रूप में साकार हो सके।
पिता हो, पुत्र हो या पति, प्रत्येक रूप में पुरुष नारी का रक्षक है। प्रत्येक पुरुष अबला के आत्मसम्मान की रक्षा के साथ-साथ अन्य जीवों की भी रक्षा करें। रक्षाबन्धन देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी होना चाहिये। रक्षा बंधन को केवल भाई बहन का पर्व न मानते हुए हम सभी को अपने विचारों के दायरे को विस्तृत करते हुए, विभिन्न संदर्भों में इसका महत्व समझना होगा। यह पर्व सांप्रदायिकता और वर्ग-जाति की दीवार को गिराने में भी मुख्य भूमिका निभा सकता है। आज यह पर्व हमारी संस्कृति की पहचान है और हम हिन्दुस्तानियों को इस पर्व पर गर्व है।
संक्षेप में इसे अपनत्व और प्यार के बंधन से रिश्तों को मजबूत करने का पर्व माना जाना चाहिए। बंधन का यह तरीका ही भारतीय संस्कृति को दुनिया की अन्य संस्कृतियों से अलग पहचान देता है।
हमें समाज, परिवार और देश से भी परे आज जिसे बचाने की जरुरत है, वह है सृष्टि। राखी के इस पावन पर्व पर हम सभी को एक जुट होकर यह संकल्प लें, राखी के दिन एक स्नेह की डोर एक वृक्ष को बांधे और उस वृक्ष की रक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर लें। वृक्षों को देवता मानकर पूजन करने में मानव जाति का स्वार्थ निहित होता है। जो प्रकृति आदिकाल से हमें निस्वार्थ भाव से केवल देती ही आ रही है, उसकी रक्षा के लिये भी हमें इस दिन कुछ करना चाहिए। पेड़-पौधे बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के वातावरण में स्वयं को अनुकूल रखते हुए, मनुष्य जाति को जीवन दे रहे होते है। इस धरा को बचाने के लिये राखी के दिन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना आज की महती आवश्यकता है। आईये, हम सब मिलकर राखी का एक सूत्र बांधकर एक वृक्ष की रक्षा का वचन लें।