पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह जितने तलवार के धनी थे उतने ही वह अपने शालीन व्यवहार के लिए भी जाने जाते थे। अपनी प्रजा के सुख-दुख की वह बहुत परवाह करते थे और उनके दर्द को दूर करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। एक बार महाराजा रणजीत सिंह कहीं जा रहे थे कि एक ईंट सामने से आकर उनको लगी। रणजीत सिंह को समझ नहीं आया की किसी ने ईंट उनके ऊपर क्यों फेंकी। सिपाहियों ने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो एक बुढ़िया उनको दिखाई दी। उन्होंने उसको गिरफ्तार कर महाराज के सामने पेश किया।
बुढ़िया को जैसे ही राजा के सामने लाया गया वह डरकर काँपने लगी। महाराजा रणजीत सिंह उससे कुछ कहते उससे पहले ही वह बोल पड़ी, ‘सरकार! मेरा बच्चा कल से भूखा था उसके खाने के लिए बेर के पेड़ पर पत्थर मारकर तोड़ रही थी, लेकिन गलती से वह पत्थर आपको लग गया। मुझे मेरी गलती के लिए माफ करें।’
महाराज के कुछ देर सोचकर कहा कि बुढ़िया को एक हजार रुपए देकर छोड़ दिया जाए। यह सुनकर सारे कर्मचारी अचंभे में पड़ गए, क्योंकि जिसको दंड मिलना चाहिए था उसको पुरस्कार मिल रहा है। आखिर एक दरबारी से रहा न गया और उसने पूछ लिया, ‘महाराज जिसको दंड मिलना चाहिए था उसको रुपयों की सौगात? आखिर क्यों?’
तब महाराज ने उस व्यक्ति से कहा कि जब निर्जीव पेड़ पत्थर लगने पर फल दे सकता है तो पंजाब का महाराजा पत्थर लगने पर उसे खाली हाथ कैसे लौटा सकता है।
सार: हर व्यक्ति को उदार और बड़े दिल का होना चाहिए और दूसरों के प्रति क्षमा का भाव रखना चाहिए।
रमेश गुर्जर