स्वामी विवेकानन्द अपने परिव्राजक काल में भारत के भ्रमण के दौरान वाराणसी में रूके थे। वहाँ एक दिन जब वे माँ दुर्गा के मंदिर के दर्शन करके लौट रहे थे, तभी बंदरों का एक झुण्ड उनके पीछे लपका। हाथ में झोला लिए स्वामीजी को देख बंदरों ने समझा कि उनके पास प्रसाद आदि कुछ खाने की वस्तु है। बस सारे बंदर एक साथ उनकी ओर आ धमके। बंदर भी सामान्य नहीं थे- बड़े खूंखार बंदर। कभी व ेस्वामीजी के पैरों पर झपट्टा मारते, कभी झोले पर। स्वयं को बचाने के लिए विवेकानन्द तेजी से दौड़ने लगे, किन्तु बंदर कहाँ पीछा छोड़ने वाले थे, सारे बंदर भी गुर्राते हुए स्वामीजी के पीछे दौड़े। अब स्वामीजी जितना तेज दौड़ते बंदर और भी क्रोधित होकर उनके पीछे लपकते। वहीं सड़क किनारे बैठे एक वृद्ध साधु यह सारा दृश्य देख रहे थे, उन्होंने चिल्लाकर कहा- ‘‘भागो मत, इन दुष्टों का सामना करो।’’ ये शब्द सुनकर स्वामी विवेकानन्द रूक गए। उनके रूकते ही पीछे आ रहे बंदर भी ठिठक गए। अब स्वामीजी में कुछ हिम्मत आई तो वे पलटकर बंदरों के सामने डटकर खड़े हो गए। यह देख बंदरों ने गुर्राना बंद कर दिया और कुछ पीछे हट गए। अब स्वामीजी जैसे-जैसे बंदरों की ओर आगे बढ़ते, बंदर पीछे हटते जाते और अंततः सारे बंदर मुड़कर भाग गए।
इस छोटी सी घटना से स्वामी विवेकानन्द ने एक बड़ा सबक सीख लिया- ‘‘भागो मत, सामना करो।’’ जब भी कोई संकट या कठिनाई आजाये तो उससे डर कर भागना नहीं है, बल्कि डटकर वीरता से सामना करना है। इस घटना को सुनाते हुए स्वामी विवेकानन्द ने न्यूयार्क में दिये अपने भाषण मे ंकहा था- ‘‘यह सबके जीवन के लिए एक सबक है कि संकट का सामना करो, वीरता से सामना करो। बंदरों की तरह जीवन की कठिनाइयाँ भी पीछे हट जाएँगी, यदि हम उनसे दूर भागने की बजाय निडर होकर सामने खड़े हो जाएँ। कायर कभी भी विजय हासिल नहीं कर सकता। हमें डर और कष्टों का सामना करना होगा, उनके स्वतः दूर चले जाने की आशा छोड़कर।’’
जीवन है तो संघर्ष है। संघर्षों के बिना जीवन ही निरर्थक है। इसलिए जीवन में आगे बढ़ना है, लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो मार्ग में आने वाली अनेकानेक बाधाओं, समस्याओं से डरकर भागना नहीं है, उनका वीरता के साथ मुकाबला करना है। जीवन है तो केवल सुख ही नहीं होंगे, पग-पग पर अनेक दुख भी आएँगे, तब उन दुखों से घबराकर निराश नहीं होना है, उनका भी सामना हिम्मत के साथ करना है। बस फिर देखना, बाधाओं, कठिनाइयों और दुखों को हराकर अन्ततः हम विजय प्राप्त कर ही लेंगे।
परीक्षा देते समय कठिन प्रश्नों से डरकर यदि हम लिखना छोड़ देंगे तो क्या परीक्षा उत्तीर्ण कर पाएँगे? घर में आग लगने पर यदि हम दूर भाग कर विलाप करेंगे तो क्या घर को आग की भीषण लपटों से बचा पाएँगे? एक बड़ा पेड़ यदि मार्ग को अवरूद्ध किये हुए सड़क पर पड़ा है, तब उसे बलपूर्वक हटाने की बजाय यदि हम उसके हटाए जाने की प्रतीक्षा करते रहेंगे तो क्या सही समय पर मंजिल तक पहुँच पाएँगे? दुश्मन के हमले से डरकर यदि हमारे सैनिक युद्ध का मैदान छोड़कर भाग जाएँ तो क्या राष्ट्र रक्षा हो सकेगी?………. ऐसे अनेक प्रश्नों का एक ही प्रत्युत्तर होगा- नहीं। जीवन में तो इनसे भी बड़ी समस्याएँ सामने आ सकती हैं, उन सबका एक ही समाधान है- ‘‘भागो मत, सामना करो।’’ सफलता प्राप्त करनी है तो जीवन की चुनौतियों का सामना करना ही होगा।
उमेश कुमार चैरसिया