हमारी संस्कृति में नारी का स्थान अत्यन्त ऊँचा है। नारी को देवी के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। अपनी गरिमा, तेजस्विता के कारण भारतवर्ष की नारी सम्पूर्ण विश्व में पूजनीया है। नारी परिवार का केन्द्र बिन्दु है, समाज का आधार है। समय के अनुसार नारी की सोच उसकी मानसिकता में अन्तर आया है। स्त्री के प्रति समाज का भी दृष्टिकोण परिवर्तित हुआ है। कल घर आँगन तक सीमित नारी आज आकाश छूने को तत्पर है। जीवन की धारा में नारी पुरुष के साथ मिलकर शक्ति का रूप लेकर साधिका बनती है। नारी सेवा और त्याग की मूर्ति है।
भारतीय परिवेश में परिवार के केंद्र में नारी है। परिवार के सारे घटक उसी के चतुर्दिक घूमते हैं, वहीं पोषण पाते हैं और वहीं विश्राम। वही सबको एक माला में पिरोये रखने का प्रयास करती है। किसी भी समाज का स्वरूप वहाँ की नारी की स्थिति पर निर्भर करता है। यदि उसकी स्थिति सम्मानजनक है तो समाज भी सुदृढ़ और मजबूत होगा। भारतीय महिलाएँ सृष्टि के आरम्भ से अनंत गुणों का आगार रही हैं। पृथ्वी सी सहनशीलता, सूर्य जैसा तेज, समुद्र की गंभीरता, पुष्पों सा मोहक सौंदर्य व कोमलता और चंद्रमा जैसी शीतलता महिलाओं में विद्यमान है। वह दया, करुणा, ममता, सहिष्णुता और प्रेम की पवित्र मूर्ति है।
यदि कहा जाए कि संस्कृति, परंपरा या धरोहर नारी के कारण ही पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रही है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब-जब समाज में जड़ता आई है, मातृशक्ति ने ही उसे जगाने के लिए, उससे जूझने के लिए अपनी संतान को तैयार करके, आगे बढ़ने का संकल्प दिया है। माता जीजाबाई इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जिनकी शिक्षा दीक्षा ने बाल शिवा को छत्रपति शिवाजी जैसा महान देशभक्त और कुशल योद्धा बनाया। कौन भूल सकता है पन्ना धाय के बलिदान को, जो उत्कृष्ट त्याग के लिए इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में अंकित है। यह उच्च कोटि की कर्तव्यपरायणता थी। अपनी संतान की बलि देकर राजकुमार की जान बचाना- यह कोई सामान्य कार्य नहीं है, पर यह भी भारतीय नारी कर सकती है।
नारी का त्याग और बलिदान भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है! बाल्यावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त वह परिवार की सरंक्षिका बनी रहती है। सीता, सावित्री, गार्गी, मैत्रेयी जैसी महान नारियों ने इस देश को अलंकृत किया है। निश्चित ही महिलाएँ इस सृष्टि की सुन्दर कृति तो हैं ही, साथ ही समर्थ अस्तित्व भी है। वह जननी है अतः मातृत्व से मंडित है, वह सहचरी है इसलिए अर्धांगनी के सौभाग्य से शृंगारित है, वह गृहस्वामिनी है इसलिए अन्नपूर्णा के ऐश्वर्य से अलंकृत है, वह शिशु की प्रथम शिक्षिका है इसलिए गुरु की गरिमा से गौरवान्वित है। मातृशक्ति घर, समाज और राष्ट्र का आदर्श है। कोई पुण्य कार्य, यज्ञ, अनुष्ठान, निर्माण आदि बिना मातृ शक्ति के पूर्ण नहीं होता। सशक्त महिला सशक्त समाज की आधार शिला है।
मातृशक्ति एक सनातन शक्ति है, वह आदिकाल से उन सामाजिक दायित्वों को अपने कन्धों पर उठाये आ रही है, जिसे अगर पुरुषों के कंधांे पर डाल दिया गया होता तो वह कब का लड़खड़ा गया होता। पुरातन कालीन भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान ही सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक अधिकार प्राप्त थे। वे रणक्षेत्र में भी अपने पतियांे को सहयोग देती थी। देवासुर संग्राम में कैकेयी ने अपने अद्वितीय रणकौशल से महाराज दशरथ को चकित कर दिया था। याज्ञवल्क्य की सहधर्मिणी गार्गी ने आध्यात्मिक धन के समक्ष सांसारिक धन तुच्छ है, यह सिद्ध करके समाज में अपना आदरणीय स्थान प्राप्त किया था। तुलसीदास जी के जीवन को आध्यात्मिक चेतना देने में उनकी पत्नी का ही बुद्धि चातुर्य था, मिथिला के महापंडित मंडन मिश्र की धर्मपत्नी विदुषी भारती ने महाज्ञानी शंकराचार्य जैसे व्यक्तित्व को भी शास्त्रार्थ में पराजित किया था।
रामायण एक ऐसा ग्रंथ है जिसने न केवल भारत वासियों को बल्कि संसार के अन्य देशों के निवासियों को भी एक सुव्यवस्थित जीवन जीने के लिए प्रेरित किया है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सहित अन्य अनेक नारी पात्रों की ऐसी गंभीर मर्यादानुकूल भूमिकाएँ हैं जिन्हें यदि आज का समाज स्वीकार कर ले तो संसार से कलह कटुता जैसे अनेक रोग स्वयं ही समाप्त हो जाएँगे।
रामायण की प्रमुख महिला पात्र सीता, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, अहिल्या, उर्मिला, अनसूइया, शबरी, मंदोदरी हैं। इन सभी महिलाओं में सीता, उर्मिला, अनसूया, सुलोचना और मंदोदरी इन महिलाओं को सदैव पूजनीय माना गया है क्योंकि इन्होंने अपना पतिव्रत धर्म कभी नहीं छोड़ा। इनके अतिरिक्त भक्ति-भावना की प्रतिमूर्ति शबरी भी है तो लंका में सीता की रखवाली करने वाली त्रिजटा भी है, जो राक्षसी होते हुए भी सीता की सेवा कर खुद को अनुग्रहीत मानती है। वहीं शूर्पनखा जैसी राक्षसी और मंथरा जैसी कुविचारों वाली स्त्रियाँ भी हैं, जिनसे यह सीख ली जा सकती है कि जीवन में कौन सी गलतियाँ नहीं करनी चाहिए।
उन्नत राष्ट्र की कल्पना तभी यथार्थ रूप धारण कर सकती है, जब मातृशक्ति सशक्त होकर राष्ट्र को सशक्त करे। आनंद का विषय तो यह है कि आज महिला जगत का बहुत बड़ा भाग अपनी संवाद हीनता, भीरुता एवं संकोचशीलता से मुक्त होकर सुदृढ समाज के सृजन में अपनी भागीदारी के लिए प्रस्तुत है। समस्त सामाजिक संदर्भों से जुड़ी महिलाओं की सक्रियता को अब न केवल पुरुष वरन् परिवार, समाज एवं राष्ट्र ने भी सगर्व स्वीकारा है। वर्तमान में मातृशक्ति के कार्यक्षेत्र का विस्तार इतना घनीभूत हो गया है कि कोई भी क्षेत्र इनके संपर्क से अछूता नहीं है। आज मातृशक्ति भी पुरुषों के सामान सुशिक्षित, सक्षम एवं सफल है। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, साहित्य, चिकित्सा, सेना, पुलिस, प्रशासन, व्यापार, समाज सुधार, पत्रकारिता या कला क्षेत्र हो, मातृशक्ति की उपस्थिति, योग्यता एवं उपलब्धियाँ स्वयं अपना प्रत्यक्ष परिचय प्रस्तुत कर रही है। घर-परिवार से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक उनकी कीर्ति पताका लहरा रही है।