विश्व की सबसे प्राचीन कालगणना के आधार पर ही महाराज विक्रमादित्य ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के प्रारंभ के लिए चुना था। इस दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया। आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धूरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है।
दुनिया भर में नया साल 1 जनवरी को ही मनाया जाता है लेकिन भारतीय पंचाग के अनुसार नया साल 1 जनवरी से नहीं बल्कि चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह अक्सर मार्च-अप्रैल के महीने से आरंभ होता है। दरअसल भारतीय पंचाग की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। माना जाता है कि दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। मान्यता तो यह भी है कि विक्रमादित्य के काल में सबसे पहले भारतीयों द्वारा ही कैलेंडर यानि कि पंचाग का विकास हुआ। इतना ही 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है। कहा जाता है कि भारत से नकल कर यूनानियों ने इसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया।
हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। इसे हिंदू नव संवत्सर या नव संवत् भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारम्भ की थी ‘‘चैत्रे मासि जगत् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि’’ (ब्रह्म पुराण)। इसी दिन से विक्रम संवत के नए साल का आरंभ भी होता है। इसे युगादि (उगादि) नाम से भी भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।
हिन्दू नव वर्ष का प्रारंभ चैत्र प्रतिपदा से
भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्रसम्मत कालगणना व्यावहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है।
विक्रमी संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन् की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है। हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के खगोल शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है। प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्र मास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की थी। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नव वर्षारम्भ मानते हैं। आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन- संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं।
यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप धारण कर लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहाँ तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। वसंतोत्सव का भी यही आधार है। इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगते हैं। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है।
इसी प्रतिपदा के दिन आज से 2078 वर्ष पूर्व उज्जयिनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रांता शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2078 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा फहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चैहान के समय तक चला।
नव वर्ष कब होता है और क्यों ?
भारतीय कालगणना के अनुसार इस पृथ्वी के सम्पूर्ण इतिहास की कुँजी मन्वंतर विज्ञान में है, इस ग्रह के सम्पूर्ण इतिहास को 14 भागों अर्थात् मन्वन्तरों में बाँटा गया है। एक मन्वंतर की आयु 30 करोड 67 लाख और 20 हजार वर्ष होती है, इस पृथ्वी का सम्पूर्ण इतिहास 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का है। इसके 6 मन्वंतर बीत चुके हैं और 7 वां वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है। अर्थात् लगभग 185 करोड वर्ष बीत चुके हैं, और इतने ही और कुछ ज्यादा वर्ष बीतने बाकी हैं। हमारी वर्तमान नवीन (जीव) सृष्टि 12 करोड 5 लाख 33 हजार 1 सौ चार वर्ष की है। ऐसा युगों की कालगणना बताती है।
पृथ्वी पर जैव विकास का सम्पूर्ण काल 4,32,00,00.00 वर्ष है। इसमें बीते 1अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 1 सौ 11 वर्ष के दीर्घ काल में 6 मन्वंतर प्रलय, 447 महायुगी खंड प्रलय तथा 1341 लघु युग प्रलय हो चुके हैं। पृथ्वी और सूर्य की आयु की अगर हम भारतीय कालगणना देखें तो पृथ्वी की शेष आयु 4 अरब 50 करोड 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष है तथा पृथ्वी की सम्पूर्ण आयु 8 अरब 64 करोड वर्ष है। सूर्य की शेष आयु 6 अरब 66 करोड 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष तथा इसकी सम्पूर्ण आयु 12 अरब 96 करोड़ वर्ष है।
विश्व की सभी प्राचीन कालगणनाओ में भारतीय कालगणना प्राचीनतम है। इसका प्रारंभ पृथ्वी पर आज से प्रायः 198 करोड वर्ष पूर्व वर्तमान श्वेत वराह कल्प से होता हैं, अतः यह कालगणना पृथ्वी पर प्रथम जीवोत्पत्ति या मानवोत्पत्ति से लेकर आज तक के इतिहास को युगात्मक पद्धति से प्रस्तुत करती है, काल की इकाइयों की उत्तरोत्तर वृद्धि और विकास के लिए कालगणना के हिन्दू विशेषज्ञों ने अंतरिक्षीय ग्रहों की स्थिति को आधार मानकर पंचवर्षीय, 12 वर्षीय और 60 वर्षीय युगों की प्रारंभिक इकाइयों का निर्माण किया।
भारतीय कालगणना का आरम्भ सूक्ष्मतम इकाई त्रुटि से होता है, इसके परिमाप के बारे में कहा गया है कि सुई से कमल के पत्ते में छेद करने में जितना समय लगता है वह त्रुटि है, यह परिमाप 1 सेकेण्ड का 33750 वां भाग है। इस प्रकार भारतीय कालगणना परमाणु के सूक्ष्मतम ईकाई से प्रारंभ होकर काल कि महानतम ईकाई महाकल्प तक पहुंचती है। पृथ्वी को प्रभावित करने वाले सातों गृह कल्प के प्रारंभ में एक साथ एक ही अश्विन नक्षत्र में स्थित थे, और इसी नक्षत्र से भारतीय वर्ष प्रतिपदा (भारतीय नववर्ष) का प्रारंभ होता है, अर्थात प्रत्येक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथमा को भारतीय नववर्ष प्रारंभ होता है। जो वैज्ञानिक दृष्टि के साथ-साथ सामाजिक व सांस्कृतिक संरचना को प्रस्तुत करता है। भारत में अन्य संवत्सरों का प्रचलन बाद के कालों में प्रारंभ हुआ जिसमे अधिकांश वर्ष प्रतिपदा को ही प्रारंभ होते हैं।
भारतीय नव वर्ष का वैशिष्ट्य
- यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 122 वर्ष पूर्व ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
- प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवसः प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
- नवरात्र स्थापनाः शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
- युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिनः 5122 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
- सम्राट विक्रमादित्य द्वारा आज से ठीक 2078 वर्ष पहले (57 ई. पू. में) इसी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन यह अखंड राज्य स्थापित किया था।
- शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवसः विक्रमादित्य की भाँति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
- संत झूलेलाल जन्म दिवसः सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए ।
- गुरू अंगददेव प्रगटोत्सवः सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस।
- समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
- विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक आद्य सरसंघचालक केशवराम बलिराम हेडगेवार जी की जयंती भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि को ही मनाई जाती है।
सबके कल्याण की कामना का पर्व
चैत्र मास के आगमन एवं नववर्ष से सम्पूर्ण वातावरण आनंदित होकर मंगल गायन करने लगता हैं। सभी ओर आनंद की अमृत वर्षा होने लगती है पशु-पक्षी, जीव-जंतु सभी में नवजीवन के संचरित होने से प्रेम एवं आनंद से परिपूर्ण नवांकुर प्रस्फुटित होते हैं, जिसकी पावनता में सुख-शांति एवं समन्वय की रसधारा बहने लगती है। संवत्सर-चक्र के अनुसार सूर्य इस ऋतु में अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि मेष में प्रवेश करता है। भारतवर्ष में वसंत ऋतु के अवसर पर नूतन वर्ष का आरम्भ मानना इसलिए भी हर्षोल्लासपूर्ण है क्योंकि इस ऋतु में चारों ओर हरियाली रहती है तथा नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति का नव शृंगार किया जाता है। लोग नववर्ष का स्वागत करने के लिए अपने घर-द्वार सजाते हैं तथा नवीन वस्त्राभूषण धारण करके ज्योतिषाचार्य द्वारा नूतन वर्ष का संवत्सर फल सुनते हैं।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि के दिन प्रातः काल स्नान आदि के द्वारा शुद्ध होकर हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प और जल लेकर ‘ओम भूर्भुवः स्वः संवत्सर- अधिपति आवाहयामि पूजयामि च’ इस मंत्र से नव संवत्सर की पूजा करनी चाहिए तथा नववर्ष के अशुभ फलों के निवारण हेतु ब्रह्मा जी से प्रार्थना करनी चाहिए कि ‘हे भगवन! आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष कल्याणकारी हो और इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सभी अनिष्ट और विघ्न शांत हो जाएँ।’
नव संवत्सर के दिन नीम के कोमल पत्तों और ऋतुकाल के पुष्पों का चूर्ण बनाकर उसमें काली मिर्च, नमक, हींग, जीरा, मिश्री, इमली और अजवायन मिलाकर खाने से रक्त विकार आदि शारीरिक रोग शांत रहते हैं और पूरे वर्ष स्वास्थ्य ठीक रहता है।
तरुण शर्मा