होली का पर्व बहुआयामी है। इस दिन समाज से ऊँच-नीच, गरीब-अमीर जैसी विभाजक भावनाएँ विलुप्त हो जाती हैं। यह पर्व खेती-किसानी से भी जुड़ा है इसीलिए तो जलती होली में गेहूँ की बालियों को भूनने का महत्व है। होली का त्योहार भारतवर्ष में वैदिक काल से ही मनाया जाता आ रहा है। हिन्दू मास के अनुसार चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा के दिन धरती पर प्रथम मानव मनु का जन्म हुआ था। इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है। नरसिंह रूप में भगवान इसी दिन प्रकट हुए थे और हिरण्यकश्यप नामक महासुर का वध कर भक्त प्रहलाद को दर्शन दिए थे।
होली का पावन त्योहार एक प्राचीन भारतीय त्योहार है। भारत देश के अलग अलग हिस्सों मंे होली के त्योहार को अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। उदाहरण के तौर पर होलिका पूजन, होलिका दहन, धुलेंडी, धुलिवन्दन, धुरखेल वसंतोत्सव आदि। होली का पर्व हर साल के फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली के त्योहार में विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाएँ होती है। होलिका का पूर्ण सामग्री सहित विधिवत् पूजन किया जाता है। अट्टहास, किलकारियों तथा मंत्रोच्चारण से पापात्मा राक्षसों का नाश हो जाता है। होलिका-दहन से सारे अनिष्ट दूर हो जाते हैं। वस्तुतः होली आनंदोल्लास का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं की रोशनी में होली के त्योहार का विराट समायोजन बदलते परिवेश में विविधताओं का संगम बन गया है। इस अवसर पर रंग, गुलाल डालकर अपने इष्ट मित्रों, प्रियजनों को रंगीन माहोल से सराबोर करने की परम्परा है, जो वर्षों से चली आ रही है। एक तरह से देखा जाए तो यह अवसर प्रसन्नता को मिल-बाँटने का होता है। यह पर्व सबका मन मोह लेता है, जहाँ भक्त और भगवान एकाकार होते हैं एवं उनके बीच वात्सल्य का रसरंग प्रवाहमान होता है। सचमुच होली दिव्य है, अलौकिक है और मन को माँजने का दुर्लभ अवसर है।
ऐतिहासिकता
इस पर्व के विषय में सर्वाधिक प्रसिद्ध कथा प्रह्लाद तथा होलिका के संबंध में भी है। नारदपुराण में बताया गया है कि हिरण्यकशिपु नामक राक्षस का पुत्र प्रह्लाद अनन्य हरि-भक्त था, जबकि स्वयं हिरण्यकशिपु नारायण को अपना परम-शत्रु मानता था। उसके राज्य में नारायण अथवा श्रीहरि नाम के उच्चारण पर भी कठोर दंड की व्यवस्था थी। अपने पुत्र को ही हरि-भक्त देखकर उसने कई बार चेतावनी दी, किंतु प्रह्लाद जैसा परम भक्त नित्य प्रभु- भक्ति में लीन रहता था। हारकर उसके पिता ने कई बार विभिन्न प्रकार के उपाय करके उसे मार डालना चाहा। किंतु, हर बार नारायण की कृपा से वह जीवित बच गया। हिरण्यकशिपु की बहिन होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। अतः वह अपने भतीजे प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश कर गई। किंतु प्रभु-कृपा से प्रह्लाद सकुशल जीवित निकल आया और होलिका जलकर भस्म हो गई। इस प्रकार होली का पर्व सत्य, न्याय, भक्ति और विश्वास की विजय तथा अन्याय, पाप तथा राक्षसी वृत्तियों के विनाश का भी प्रतीक है। मुख्यतः होली का त्योहार दो चरण मंे मनाया जाता है। पहले चरण में होली के एक दिन पहले रात को सार्वजनिक चैक पर होलिका सजा कर उसका दहन किया जाता है। होलिका दहन में पूजन की पवित्र विधि के लिए एक लोटा शुद्ध जल, कुमकुम, हल्दी, चावल, कच्चा सूत, पताशे, मूँग, चने, गुड़, नारियल, अबीर-गुलाल, हल्दी, कच्चे आम, जव, गेहूँ, मसूर दाल, आदि पूजन सामग्री उपयोग में ली जाती है।
विधिवत होली की प्रदक्षिणा की जाती है और पवित्र प्रज्ज्वलित होली से सुख शांति, अच्छे धन-धान्य, तथा समृद्ध जीवन की कामना की जाती है। कई जगहों पर इस दौरान पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य भी किये जाते हैं और लोग एक दूसरे को गुलाल लगा कर अभिनन्दन करते हैं। दूसरे चरण में दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है। होली की मस्ती एवं माहौल एक माह तक रहता है, इसके उपलक्ष्य में अनेक सांस्कृतिक एवं लोक चेतना से जुड़े कार्यक्रम होते हैं। महानगरीय संस्कृति में होली मिलन के आयोजनों ने होली को एक नया उल्लास एवं उमंग का रूप दिया है। इन आयोजनों में बहुत शालीन तरीके से गाने बजाने के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। घूमर जो होली से जुड़ा एक राजस्थानी कार्यक्रम है उसमें लोग मस्त हो जाते हैं। चंदन का तिलक और ठंडाई के साथ सामूहिक भोज इस त्यौहार को गरिमामय छवि प्रदान करते हैं। देर रात तक चंग की धुंकार, घूमर, डांडिया नृत्य और विभिन्न क्षेत्रों की गायन मंडलियाँ अपने प्रदर्शन से रात बढ़ने के साथ-साथ अपनी मस्ती और खुशी को बढ़ाते हैं।
होली शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ होता है पवित्रता। पवित्रता प्रत्येक व्यक्ति को काम्य होती है और इस त्योहार के साथ यदि पवित्रता की विरासत का जुड़ाव होता है तो इस पर्व की महत्ता शतगुणित हो जाती है।
होली सौहार्द्र, प्रेम और मस्ती के रंगों में सराबोर हो जाने का हर्षोल्लासपूर्ण त्यौहार है। यद्यपि आज के समय की गहमागहमी, अपने-तेरे की भावना, भागदौड़ से होली की परम्परा में बदलाव आया है। परिस्थितियों के थपेड़ों ने होली की खुशी को प्रभावित भी किया है, लेकिन देश-विदेश में धर्मस्थल के रूप में ख्याति प्राप्त बृजभूमि ने आज भी होली की प्राचीन परम्पराओं को संजोये रखा है। यह परम्परा इतनी जीवन्त है कि इसके आकर्षण में देश-विदेश के लाखों पर्यटक ब्रज वृन्दावन की दिव्य होली के दर्शन करने और उसके रंगों में भीगने का आनन्द लेने प्रतिवर्ष यहाँ आते हैं। होली के पावन प्रसंग पर हमें इस बात के लिए दृढ़ संकल्पित होना होगा कि अपने मन, वाणी और व्यवहारों में अंतर्निहित आसुरी प्रवृत्तियों का परिष्कार करें एवं उसके स्थान पर पवित्रता की देवी को प्रतिष्ठित करें। होली का कोई-न-कोई संकल्प हो और यह संकल्प हो सकता है कि हम स्वयं शांतिपूर्ण जीवन जिएँ और सभी के लिये शांतिपूर्ण जीवन की कामना करें। ऐसा संकल्प और ऐसा जीवन सचमुच होली को सार्थक बना सकते हैं।
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छुए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
– हरिवंशराय बच्चन
निर्मला मेनारिया