सांस्कृतिक उत्कर्ष हेतु अनथक संघर्ष की गौरव गाथा
अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम मन्दिर का कार्यारम्भ होना, नये भारत के अभ्युदय की शुभ एवं गौरवमय ऐतिहासिक घटना है। जो युग-युगों तक इस देश को सशक्त बनाने का माध्यम बनती रहेगी। श्रीराम के मन्दिर का निर्माण की शुभ शुरुआत होना, एक अनूठी एवं प्रेरक घटना है, एक कालजयी आस्था के प्रकटीकरण का अवसर है, जो भारत के लिये शक्ति, स्वाभिमान, गुरुता एवं प्रेरणा का माध्यम बनेगी। श्रीराम मन्दिर निर्माण की भूमिका तक पहुंचने के लिये असंख्य लोगों की आस्था एवं भक्ति का लम्बा संघर्ष रहा है, यह मन्दिर निर्माण उनके सुदीर्घ संघर्ष की जीत है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जन्म भूमि का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है। त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्रजी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट, सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओं से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में जन्मभूमि की शोभा एवंमहत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है। धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतों के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है।
धर्म ग्रन्थों के आधार पर समाज की धारणा है कि जब श्रीराम जी प्रजा सहित दिव्यधाम को प्रस्थान कर गए तो सम्पूर्ण अयोध्या, वहाँ के भवन, मठ-मन्दिर सभी सरयू में समाहित हो गए। अयोध्या का केवल भूभाग शेष रहा। अयोध्या बहुत दिनों तक उजड़ी रही। तत्पश्चात महाराज कुश जो कुशावती (कौशाम्बी) में राज्य करने लगे थे, पुनः अयोध्या आए और अयोध्या को बसाया, इसका उल्लेख कालिदास ने ‘रघुवंश’ ग्रन्थ में किया है। लोमश रामायण के अनुसार उन्होंने कसौटी पत्थरों के खम्भों से युक्त मन्दिर जन्मभूमि पर बनवाया। जैन ग्रन्थों के अनुसार दुबारा उजड़ी अयोध्या को पुनः ऋषभदेव ने बसाया।
महाराज विक्रमादित्य द्वारा श्रीराम मन्दिर का निर्माण
भविष्य पुराण में लिखा है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने मोक्षदायिनी सप्त पुरियों को बसाया था। ईसा से 57 वर्ष पूर्व विक्रमादित्य उज्जैन के राज्य सिंहासन पर आरुढ़ हुए तभी से विक्रम संवत् प्रारम्भ हुआ।
विक्रमादित्य के पूर्व अयोध्या एक बार पुनः उजड़ चुकी थी। ग्रन्थों में आए वर्णन के निर्दिष्टानुसार उन्होंने सरयू नदी के लक्ष्मण घाट को आधार बनाकर विभिन्न स्थलों को चिन्हित करके 360 मन्दिर बनाए। उनके द्वारा चिन्हांकित विशेष स्थलों में रामकोट-राम जन्मभूमि, नागेश्वरनाथ मन्दिर, मणिपर्वत आदि प्रमुख हैं।
भगवान विष्णु के परमभक्त होने के कारण विष्णुपद नामक पर्वत पर विष्णुध्वज की स्थापना की तथा श्रीराम जन्मभूमि पर एक भव्य मन्दिर का निर्माण करवाया।
सालार मसूद का श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रमण एवं राजा सुहेलदेव द्वारा उसका वध
आक्रमणकारी सालार मसूद ने 1033 ई0 में साकेत अथवा अयोध्या में डेरा डाला था तथा उसी समय जन्मभूमि के द्वारा प्रसिद्ध मन्दिर को भी ध्वस्त किया था ।
सालार मसूद जब मन्दिर को तोड़कर वापिस जा रहा था तभी बहराइच में घनघोर युद्ध में सालार मसूद का वध 14 जून, 1033 को वीर पराक्रमी राजा सुहेलदेव ने किया।
महाराजा सुहेलदेव के भीषण युद्ध से आक्रान्ता इतने भयभीत हो गए कि सैंकड़ों वर्ष तक किसी की हिम्मत भारत आने की नहीं हुई।
गहड़वाल वंशीय राजाओं ने पुनः मन्दिर का निर्माण कराया।
बाबर का अयोध्या पर आक्रमण
सन् 1526 में बाबर अयोध्या की ओर आया। उसने अपना डेरा सरयू के उस पार डाला। वह भारत पर विजय प्राप्त करना चाहता था, वह अपने धर्मगुरु से मिला।
उन्होंने बाबर को अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि के मन्दिर को तोड़ने की सलाह दी, जो हिन्दू सैनिकों के मनोबल को प्रभावित करेगी।
इस प्रकार बाबर ने अपने सेनापति मीरबांकी को जन्मभूमि मन्दिर तोड़ने का आदेश दिया।
सन् 1528 में अयोध्या में आक्रमण करके जन्मभूमि पर बने मन्दिर को तोड़कर, मस्जिद निर्माण करने का प्रयास किया पर प्रचण्ड हिन्दू प्रतिकार के कारण वह सफल नहीं हुआ।
इसी कारण वहाँ मीनारें नहीं बन सकी, वजू करने का स्थान भी नहीं बन सका। इस प्रकार वह मात्र एक ढाँचा था, मस्जिद कदापि नहीं।
ढाँचे के बाहर लगा हुआ फारसी में लिखा पत्थर “फरिस्तों का अवतरण स्थल” उस स्थान के जन्मभूमि होने की पुष्टि करता है।
एक जगह पर सीता पाक स्थान भी लिखा था। लगातार आक्रमण और संघर्ष के कारण अयोध्या में बहुत स्थान खाली हो गया था।
जन्मभूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए किये गये संघर्षों की शृंखला
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बना हुआ मन्दिर 1528 ई. में आक्रमणकारी बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीरबांकी द्वारा तोड़ा गया। इस मन्दिर को प्राप्त करने के लिए हिन्दू समाज सदैव संघर्ष करता रहा और जीवन देता रहा। मीरबांकी द्वारा मंदिर तोड़े जाते समय भाटी नरेश महताब सिंह, हंसवर नरेश रणविजय सिंह, हंसवर के राजगुरू पं. देवीदीन पाण्डेय ने 15 दिनों तक संघर्ष किया। घमासान युद्ध हुआ। बाबर के काल में ही इस स्थान को वापस प्राप्त करने के लिए 4 बार युद्ध हुए। हुमायूँ के शासनकाल में रानी जयराज कुँवरी एवं स्वामी महेश्वरानन्द जी के नेतृत्व में युद्ध हुए। 10 युद्धों का वर्णन मिलता है। अकबर के काल में 20 बार युद्ध हुये। हतबल अकबर ने श्रीराम जन्मभूमि परिसर के अन्दर तीन गुम्बदों वाले तथाकथित मस्जिद के ढांचे के सामने एक चबूतरा बनाकर तथा उस पर प्रभु राम का मन्दिर बनवाकर बेरोकटोक पूजा करने की अनुमति दे दी।
यही स्थान कालान्तर में राम चबूतरे के नाम से विख्यात था। इस स्थान पर भगवान की पूजा सदैव चलती रही। 06 दिसम्बर, 1992 के बाद ही इस स्थान का अस्तित्व समाप्त हुआ। औरंगजेब के काल में भी 30 युद्ध हुये। बाबा वैष्णवदास, गोपाल सिंह, ठाकुर जगदम्बा सिंह आदि ने डटकर लोहा लिया।
सदियों पुरानी राम जन्म भूमि संघर्ष यात्रा में वैसे तो कई मोड़ आए, मगर इस पूरी संघर्ष यात्रा के पिछले सत्तर साल कई महत्वपूर्ण रहे। इन सत्तर बरसों में पाँच अहम् पड़ावों पर गौर करें-
पहला पड़ावः 1949ः जुलाई में प्रदेश सरकार ने विवादित ढाँचे के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की। लेकिन यह भी नाकाम रही। 1949 में ही 22-23 दिसंबर को विवादित ढांचे में राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां प्रकट हुई।
दूसरा पड़ावः 1989ः नवंबर में विवादित ढाँचे से थोड़ी दूरी पर राम मंदिर का शिलान्यास किया गया।
तीसरा पड़ावः 6 दिसंबर 1992 को लाखों कारसेवकों ने विवादित ढाँचे को गिरा दिया। कारसेवक 11 बजकर 50 मिनट पर ढाँचे के गुम्बद पर चढ़े। करीब 4.30 बजे ढाँचे का तीसरा गुम्बद भी गिर गया। जिसकी वजह से देशभर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे।
चैथा पड़ावः 30 सितंबर 2010ः इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने आदेश पारित किया। तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया, जिसमें मंदिर बनाने के लिए हिन्दुओं को जमीन देने के साथ ही विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दिए जाने की बात कही गयी। मगर यह निर्णय दोनों को स्वीकार नहीं हुआ। विवादित जमीन को राम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बाँटने का फैसला किया, जिसे सबने सुप्रीम कोर्ट में चेलेंज किया।
पाँचवा पड़ावः 9 नवम्बर 2019 सुप्रीम कोर्ट ने सदियों पुराने इस विवाद पर अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर पहुंचे। पाँच जजों ने लिफाफे में बंद फैसले की काॅपी पर दस्तखत किए और इसके बाद जस्टिस गोगोई ने फैसला पढ़ना शुरू किया।
विवादित जमीन पर रामलला का हक बताते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया। ट्रस्ट के पास ही मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी होगी यानी अब राम मंदिर का निर्माण का रास्ता साफ हो गया।
कोर्ट ने विवादित जमीन पर पूरी तरह से रामलला का हक माना है, लेकिन मुस्लिम पक्ष को भी अयोध्या में जमीन देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही किसी उचित जगह मस्जिद निर्माण के लिए 5 एकड़ जगह दी जाए। फैसले में (भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण) का हवाला देते हुए कहा गया कि बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी खाली जगह पर नहीं किया गया था। विवादित जमीन के नीचे एक ढाँचा था और यह इस्लामिक ढाँचा नहीं था। कोर्ट ने कहा कि पुरातत्व विभाग की खोज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
हालाँकि, कोर्ट ने रिपोर्ट के आधार पर फैसले में यह भी कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है। इससे आगे कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा है। कोर्ट ने 6 दिसंबर 1992 को गिराए गए ढांचे पर कहा कि मस्जिद को गिराना कानून का उल्लंघन था। ये तमाम बातें कहने के बाद कोर्ट ने विवादित जमीन पर रामलला का हक बताया। कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के दावों को खारिज कर दिया।
नए भारत की नींव
राम मंदिर की आधारशीला रखे जाने के साथ ही नए भारत की नींव भी रख दी गई है। आप कह सकते हैं कि ये भारत के लिए और आपके जीवन के लिए एक नए युग की शुरुआत है और राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के साथ ही भारत की राजनीति और समाज की परिभाषा भी नए सिरे से तय होगी। इसलिए अब आपको समझना चाहिए कि राम मंदिर निर्माण के साथ क्या-क्या बदल गया और क्या-क्या बदल जाएगा।
मंदिर निर्माण से तुष्टिकरण की समाप्ति
पहली बात ये होगी कि जिन लोगों ने राम मंदिर के नाम पर राजनीति की दुकानें खोली थीं। उनका राम नाम पर ये राजनीतिक व्यापार हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। राम मंदिर को लेकर तीन तरह की विचारधारा थी। पहले वर्ग में वो लोग थे जो राम मंदिर का विरोध करके अपनी राजनीति को चमका रहे थे, दूसरे वर्ग में वो लोग थे जो राम मंदिर के समर्थन में थे और तीसरे वर्ग में वो लोग थे जो तटस्थ बने रहे। लेकिन आपको याद रखना चाहिए कि जो सत्य के सामने तटस्थ बने रहते हैं, समय उनके भी अपराध लिखता है।
दूसरी बात ये है कि जब वर्ष 1990 में अयोध्या विवाद ने तूल पकड़ा तब भारत के लोगों ने पहली बार धर्म निरपेक्षता की परिभाषा का नए सिरे से विश्लेषण शुरू किया। भारत की बहुसंख्यक आबादी को ये अहसास हुआ कि कहने को तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। लेकिन राजनीति मुख्य तौर पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण पर आधारित है, ये तुष्टिकरण नकली धर्म निरपेक्षता की आड़ में किया गया। जबकि असली धर्म निरपेक्षता का मतलब किसी एक वर्ग का तुष्टिकरण नहीं है। इसका मतलब है सबको साथ लेकर चलना और सबके साथ एक जैसा व्यवहार करना।
भविष्य की राह
राम मंदिर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। लेकिन सवाल ये है कि अब आगे क्या होगा? अब आगे ये हो सकता है कि धीरे-धीरे भारत, जाति और धर्म की जकड़ से बाहर निकल जाएगा। सच तो ये है कि राम मंदिर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दूरी घटाने का काम करेगा। राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए जिस व्यक्ति को न्योता देना नहीं भूले, उनका नाम है इकबाल अंसारी। इकबाल अंसारी ही अयोध्या विवाद में बाबरी मस्जिद के पक्षकारों के बीच सबसे बड़ा चेहरा थे। यानी कानूनी लड़ाई अपनी जगह है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान और लोगों की आस्था का सम्मान अपनी जगह है। राम मंदिर दो समुदायों के बीच विवाद का नहीं बल्कि सभी धर्मों को जोड़ने वाला विषय है।
विकास पथ पर अयोध्या
राम मंदिर के निर्माण के साथ ही अयोध्या के विकास का दौर भी शुरू हो जाएगा। अयोध्या वर्षों तक भारत के सबसे बड़े कानूनी मुकदमे के केंद्र में रहा फिर भी इसका विकास नहीं हो पाया। लेकिन अब उम्मीद है कि राम की इस नगरी का विकास बहुत तेजी से होगा और इसे एक बड़े पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जाएगा।
रामायण सर्किट का निर्माण
आखिर बात ये है कि राम मंदिर भारत के लिए सबसे बड़ा साॅफ्ट पावर बन जाएगा। दक्षिण एशिया के ज्यादातर देशों पर राम और उनके जीवन का प्रभाव है। भारत राम मंदिर के रास्ते इन देशों के साथ भी अपने संबंधों को बेहतर कर सकता है। भारत एक ऐसे रामायण सर्किट का निर्माण भी कर रहा है जो ना सिर्फ भारत के अलग-अलग इलाकों से होकर गुजरेगा बल्कि इसमें वो देश भी शामिल होंगे जिनका इतिहास श्रीराम के जीवन से जुड़ा है। उदाहरण के लिए नेपाल एक ऐसा ही देश है। कहा जाता है कि सीता नेपाल के जनकपुर के राजा जनक की पुत्री थीं। आज भारत और नेपाल के संबंधों में कुछ तनाव हैं लेकिन श्री राम इस मतभेद को भी दूर कर सकते हैं।
इसके अलावा भगवान राम की पहचान एक ग्लोबल सुपर हीरो के तौर पर भी होगी। रामायण का मंचन दुनिया के कई देशों में किया जाता है और राम के जीवन का प्रभाव थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया और यहां तक की चीन और ईरान जैसे देशों पर भी है। इन देशों के साथ-साथ पूरी दुनिया अब भगवान राम को एक सुपर हीरो की तरह देखेगी।
डाॅ. कुसुम चपलोत