स्वास्थ्य रक्षा भी एक बड़ा तथा गहन विषय है। स्वास्थ्य रक्षा संबंधी कुछ मुख्य नियमों का यहाँ संक्षिप्त उल्लेख किया जा रहा है। इन नियमों का पालन कर आप अपने स्वास्थ्य की काफी हद तक रक्षा कर सकते हैं।
स्नान- नित्य प्रातः काल शौच तथा दंत धावन के पश्चात स्नान करना आवश्यक है। स्नान करने से शरीर की त्वचा के सभी छिद्र खुल जाते हैं, जिससे शुद्ध वायु का शरीर में भरपूर प्रवेश होता है तथा शरीर के भीतर की गंदगी आसानी से बाहर निकल जाती है। स्नान भोजन से पूर्व ही करना चाहिए। यदि किसी कारणवश कभी ऐसा संभव न हो तो भोजन करने के कम से कम एक घंटे बाद स्नान करना चाहिए। भोजन करने के तुरंत बाद स्नान करना वर्जित है। दुर्बल, रोगी, वात व्याधि तथा हृदय रोग से पीड़ित मनुष्यों को गर्म पानी से स्नान करना चाहिए। कमजोर लोगों को दिन में केवल एक ही बार स्नान करना चाहिए।
व्यायाम- प्रत्येक आयु के स्त्री-पुरुष को नित्य नियमपूर्वक व्यायाम करना आवश्यक है। बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री-पुरुष, रोगी तथा निरोगी सभी व्यक्ति व्यायाम करने के अधिकारी हैं। गर्भवती स्त्रियाँ भी व्यायाम कर सकती हैं। विभिन्न परिस्थिति में विभिन्न प्रकार के व्यायाम किए जा सकते हैं। जो लोग अत्यंत कमजोर तथा रोगी हों, उनके लिए व्यायाम करना वर्जित है। प्रातः काल सूर्योदय के पूर्व ही हरी घास पर नंगे पाँव टहलना सर्वोत्तम व्यायाम है। यह सभी आयु के स्त्री-पुरुषों के लिए हितकर है। कुश्ती, दंड-बैठक, मुग्दर घुमाना, दौड़ लगाना, खुली जगह में टहलना, पानी में तैरना तथा फुटबाॅल, टेनिस आदि खेलना ये सभी कार्य व्यायाम की श्रेणी में आते हैं। इनमें से अपने लिए जो अनुकूल हो, उसी को नियमित रूप से करना उचित है।व्यायाम हमेशा स्नान से पूर्व ही करना चाहिए तथा व्यायाम करने के कम से कम आधे घंटे बाद जब शरीर का पसीना सूख जाए तभी स्नान करना उचित है।
भोजन- शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पौष्टिक अथवा अमीरी भोजन की आवश्यकता नहीं होती। सच पूछा जाए तो पौष्टिक तथा अमीरी भोजन गरिष्ठ होता है, जो देर में पचता है तथा शरीर में केवल चर्बी की ही वृद्धि करता है। वास्तविक शक्ति से उसका कोई संबंध नहीं होता। भोजन वही उत्तम माना गया है जो रुचिकर, हल्का तथा सुपाच्य हो। भोजन को खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। लाल मिर्च, तेल, गुड़, खटाई तथा गरम मसाले स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। अतः इनका कम से कम सेवन करना चाहिए। यदि इनका सेवन बिलकुल ही न किया जाए तो सर्वोत्तम है। खानपान तथा स्वास्थ्य रक्षा के अन्य नियमों में त्रुटि आने पर ही शरीर में रोग का जन्म होता है। यदि स्वास्थ्य रक्षा संबंधी सभी नियमों का यथाविधि पालन किया जाए तो कभी बीमार होने के अवसर ही उपस्थित नहीं होंगे।
वस्त्र- पहनने तथा ओढ़ने-बिछाने के वस्त्रों का साफ-सुथरा होना आवश्यक है। गंदे वस्त्रों में रोग के कीटाणु छिपे रहते हैं, जो शरीर को अस्वस्थ बना देते हैं। शरीर पर पहने जाने वाले वस्त्र ढीले-ढाले होने चाहिए, ताकि अंग-प्रत्यंग को गति करने में पूर्ण सुविधा रहे। जहाँ तक संभव हो शरीर पर कम से कम वस्त्र पहनने चाहिए तथा शरीर को धूप, हवा, शीत आदि सहन करने का अभ्यस्त बनाना चाहिए।
वायु- जीवन के लिए शुद्ध वायु आवश्यक है। अशुद्ध वायु में साँस लेने से स्वास्थ्य को सर्वाधिक हानि पहुँचती है। रहने तथा काम करने का स्थान खुला और हवादार होना चाहिए। गंदे, सीलनभरे, दुर्गंधयुक्त, अँधेरे, तंग अथवा बंद स्थान में नहीं रहना चाहिए।
धूप- शारीरिक स्वास्थ्य के लिए धूप का सेवन करना भी आवश्यक है, परन्तु तेज धूप को सहन करना ठीक नहीं रहता। धूप सेवन के लिए प्रातः काल का समय सर्वोत्तम रहता है। उस समय नंगे शरीर पर कुछ देर तक सूर्य की किरणें पड़ने देनी चाहिए। जिस स्थान पर धूप न आती हो वहाँ रहना स्वास्थ्य के लिए हानिकर होता है, क्योंकि अँधेरी जगह में रोग के कीटाणु पनपते रहते हैं, जबकि धूप के कारण वे नष्ट हो जाते हैं।
डाॅ. पूजा व्यास B.A.M.S.