रेडिओ और सूक्ष्म तरंगों पर अध्ययन करने वाले जगदीश चन्द्र बसु (बोस) पहले भारतीय वैज्ञानिक थे। विभिन्न संचार माध्यमों, जैसे- रेडियो, टेलीविजन, रडार, सुदूर संवेदन यानी रिमोट सेंसिंग सहित माइक्रोवेव ओवन की कार्यप्रणाली में बसु का योगदान अहम् है। आज पूरी दुनिया बोस को मार्कोनी के साथ बेतार संचार के पथ प्रदर्शक कार्य के लिए रेडियो का सह-आविष्कारक मानती है। 19वीं सदी के अंत तक जगदीश चन्द्र बोस की शोध रुचि विद्युत चुम्बकीय तरंगों से हटकर जीवन के भौतिक पहलुओं की ओर होने लगी। बोस ने पादप कोशिकाओं पर विद्युतीय संकेतों के प्रभाव का अध्ययन किया। पौधों की वृद्धि और अन्य जैविक क्रियाओं पर समय के प्रभाव के अध्ययन की बुनियाद जगदीश चंद्र बसु ने डाली थी, जो आज विज्ञान की एक शाखा क्रोनोबायोलोजी के नाम से प्रसिद्ध है।
डाॅ जगदीश चंद्र बसु (बोस) का जन्म 30 नवंबर 1858 ईस्वी में अखंड भारत के ढाका में हुआ था। जगदीश चंद्र बसु का जन्म वर्तमान बांग्लादेश की राजधानी ढाका से थोड़ी दूर मुंशीगंज जिले के विक्रमपुर गाँव में हुआ था।
उनका बचपन अपने ही गाँव विक्रमपुर में बीता। जगदीश चंद्र बसु की माता का नाम वामा सुंदरी तथा उनके पिता का नाम भगवान चंद बसु था। भगवानचंद बसु ब्रिटिश सरकार में एक सरकारी अधिकारी के रूप में मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत थे।
जगदीश चंद्र बसु की खोज
बसु साहब का वनस्पति विज्ञान में अहम् योगदान माना जाता है। बचपन से ही उन्हे पेड़ पौधे के अध्ययन में गहरी रुचि थी। वे पेड़ पौधे पर नित्य अपना अनुसंधान करते रहते। अंत में जाकर वनस्पति विज्ञान में उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली। उन्होंने पेड़ पौधे की संवेदनशीलताओं पर गहन अनुसंधान किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे की पौधे में भी जान होती है। उन्होंने पहली बार दुनियाँ को बताया कि पेड़-पौधे का भी जन्म होता है। उसमें भी सुख-दुख का अहसास होता है। उनकी भी मृत्यु होती है। पेड़ पौधे में भी महसूस करने की शक्ति होती है। उन्होंने पहली बार पेड़-पौधे में जीवन होने की बात से विश्व को अवगत कराया। इस तरह सर जगदीश चंद्र बसु ने पौधे में संवेदनशीलता की खोज की थी।
आचार्य बसु को स्वामी विवेकानंद एवं रामकृष्ण मठ एवं मिशन के निकट लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही-स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता की। जो कि स्वयं भौतिकी की छात्रा रह चुकी थी, ने आचार्य बसु के शोध में बराबर रुचि ली और अनेक प्रकार से उनके शोध में निरंतर सहायक बनी रहीं। भगिनी निवेदिता का सहयोग केवल आचार्य बसु को ही नहीं मिला, बल्कि आचार्य बसु की पत्नी श्रीमती अबला बसु के साथ मिलकर भी भगिनी निवेदिता ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण काम किया। आचार्य बसु और भगिनी निवेदिता का इतना निकट संपर्क रहा कि इस पर एक पृथक लेख की संभावना बनती है।
रेडिओ के वास्तविक आविष्कारक
कहते हैं कि रेडियो के आविष्कारक कहे जाने वाले मार्कोनी के प्रदर्शन से 2 साल पूर्व ही जगदीश चंद्र बसु ने रेडियो तरंगों द्वारा बेतार संचार को प्रदर्शित कर लिया था। लेकिन मार्कोनी के द्वारा पहले पेटेंट करा लेने के कारण रेडियो के आविष्कार का श्रेय मार्कोनी को चला गया। लेकिन अभी भी कुछ वैज्ञानिक रेडियो के वास्तविक आविष्कारक सर जगदीश चंद्र बसु को ही मानते हैं। बसु साहब द्वारा बेतार के द्वारा अपनाई गई संकेत व्यवस्था मार्कोनी द्वारा अपनायी गयी विधि से बेहतर था। रेडियो तरंग का पता करने के लिए उन्होंने ही पहली बार सेमी कंडक्टर जंक्शन का उपयोग किया। पेड़-पौधों के सूक्ष्म संवेदनाओं से विश्व को अवगत कराने के लिए उन्होंने दिन रात मेहनत कर एक यंत्र का आविष्कार किया।
क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार
उन्होंने पेड़-पौधे की संवेदनशीलताओं को सिद्ध करने और विश्व को प्रमाण सहित दिखाने के लिए एक यंत्र का निर्माण किया। उनका यह यंत्र क्रेस्कोग्राफ से नाम से प्रसिद्ध हुआ। अतः क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार का श्रेय इसी महान् वैज्ञानिक को जाता है। इस यंत्र की खासियत है कि ये पेड़-पौधे के सूक्ष्म गतिविधियों को कई हजार गुणा बढ़ाकर दिखाता है। इस कारण सूक्ष्म गतिविधियों को भी आसानी से महसूस किया जा सकता है।
पेड़ पौधे पर संगीत का प्रभाव
पहली बार दुनियाँ के किसी वैज्ञानिक ने बताया की पेड़-पौधे पर भी संगीत का प्रभाव पड़ता है। बसु साहब ने बताया कि वनस्पति भी मौसम और तापमान से प्रभावित होते हैं। उन्होंने बताया कि पेड़ पौधे को भी पीड़ा महसूस होती है। उन्हें भी काटने पर दर्द होता है। पेड़- पौधे पर संगीत का अच्छा प्रभाव होता है। वे भी संगीत को सुनकर झूमते हैं। बाद में एक अध्ययन के बाद उनकी यह बात सही साबित हुई की संगीत कापेड़-पौधे के विकास में सकारात्मक असर होता है।
विज्ञान जगत के पुरोधा माने जाने वाले प्रोफेसर जगदीश चंद्र बोस बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे जिन्होंने रेडियो और माइक्रोवेव ऑप्टिक्स के आविष्कार तथा पेड़-पौधों में जीवन सिद्धांत के प्रतिपादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बोस मशहूर भौतिक शास्त्री होने के साथ ही जीव विज्ञानी वनस्पति वैज्ञानिक और पुरातत्वविद भी थे। उन्हें विज्ञान कल्पना का शुरुआती लेखक भी माना जाता है। बंगाली साहित्य में उनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
धातु और जीव दोनों थकते हैं
बोस ने अपने प्रयोग में पाया कि धातु और जीव दोनों लगातार काम करने से थक जाते हैं। उन्होंने बताया की धातु और जीव दोनों में ठंड एल्कोहल से एक समान हरकत होती है। एनेस्थीसिया द्वारा दोनों में बेहोशी की हालत पैदा हो सकती है। दोनों में बिजली के करेंट से अति- उत्तेजना पैदा होती है। दोनों पर विष का प्रभाव पड़ता है। धातु और जीव दोनों को चोट से आघात पहुंचता है। दोनों अत्यधिक श्रम से थक जाते हैं। लेकिन दोनों में पुनः शक्ति अर्जित करने की क्षमता होती है। उन्होंने पाया कि कोई इलेक्ट्राॅनिक उपकरण लगातार काम करने के कारण बंद हो जाता है। लेकिन थोड़ी देर बंद करने के बाद फिर से काम करने लगता है। इसी सिद्धांत पर हवाई जहाज में भी जहाज के मशीन के थकान मापने के लिए एक प्रकार का यंत्र लगाया जाता है। जिसे के नाम से जाना जाता है।
जगदीश चंद्र बसु द्वारा लिखित पुस्तकें
महान् वैज्ञानिक डाॅ. जगदीशचंद बसु एक वैज्ञानिक के साथ-साथ उच्च कोटी के लेखक भी थे। वैसे तो उन्होंने विज्ञान पर लगभग 15 पुस्तकों की रचना की। Response in The Living and Non&living vkSj The Nervous Mechanism of Plants की चर्चा अधिक मिलती है। ‘रिस्पांस इन द लिविंग’ एंड नाॅन लिविंग सर जगदीश चंद्र बसु द्वारा लिखित सबसे प्रसिद्ध पुस्तक मानी जाती है। बोस का पहला शोध कार्य बंगाल की एशियाई सोसाइटी में प्रकाशित होने के लिए प्रेषित किया गया। उनका दूसरा शोध पत्र राॅयल सोसाइटी लंदन में सन 1895 ईस्वी में भेजा गया। दिसंबर सन 1885 में ही उनका एक अन्य शोध ‘विद्युत के धु्रवीकरण पर नई खोज’ शीर्षक से लंदन के ईलैक्ट्रिशियन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इस प्रकार सर जगदीश चन्द्र बोस के शोध कार्य की वार्ता विश्व के अनेक पत्र पत्रिका में प्रकाशित हुई ।
बोस ने बांग्ला भाषा में एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक ‘अदृश आलोक’ था। इस लेख में उन्होंने लिखा था की कुछ तरंग ईंट और दीवार के अवरोध को भी आसानी से पार कर सकती है। बाद में इस पर शोध भी हुआ। वे शायद प्रथम वैज्ञानिक हुए जिन्होंने वैज्ञानिक कहानियों की रचना की। उनके द्वारा रचित कहानी संग्रह ‘अभ्यक्त’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
संदीप आमेटा