जीजाबाई शिवाजी की सिर्फ माता ही नहीं बल्कि उनकी मित्र और मार्गदर्शक भी थीं। उनका सारा जीवन साहस और त्याग से भरा रहा। उन्होंने जीवन भर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, किन्तु धैर्य नहीं खोया और अपने ‘पुत्र ‘शिवाजी’ को समाज कल्याण के प्रति समर्पित रहने की सीख दी और उन्हें महान चरित्रवान, राष्ट्रभक्त, जिजिविषावान योद्धा बनाया।
जीजाबाई (जिजाऊ) का जन्म 12 जनवरी 1598 ई. में महाराष्ट्र के बुलढ़ाणा में हुआ। इनके पिता लखुजी जाधव सिंदखेड नामक गाँव के राजा हुआ करते थे। उन्होंने जीजाबाई का नाम उस वक्त ‘जिजाऊ’ रखा था। कहते हैं की जीजाबाई अपने पिता के पास बहुत कम रही और उनकी बहुत ही छोटी उम्र में शादी कर दी गई थी। उस वक्त बचपन में ही शादी करवा दी जाती थी।
जीजाबाई का विवाह
कहते हैं कि जीजाबाई की मँगनी उसी वक्त तय हो गई थी उनकी उम्र जब 6 वर्ष थी। इसके साथ एक छोटा सा प्रसंग भी जुड़ा हुआ है। ‘इतिहास में लिखा है कि होली का दिन था, लखुजी जाधव के घर उत्सव मनाया जा रहा था, उस वक्त मोलाजी अपने बच्चे के साथ जिसकी आयु भी करीब 7-8 वर्ष थी। उसके साथ इस उत्सव में सम्मलित हुए थे। नृत्य देखते हुए अचानक लखुजी जाधव ने जीजाबाई और मोलाजी के पुत्र शाहजी को एक साथ देखा और उनके मुख से निकला ‘वाह क्या? जोड़ी है’। इसी बात को मोलाजी ने सुन लिया और बोले कि फिर तो मँगनी पक्की होनी चाहिए।’’
मोलाजी उस वक्त सुल्तान के यहाँ सेनापति थे। लखुजी जाधव के राजा होने के बाद भी सुल्तान के कहने पर उन्होंने मोलाजी के पुत्र शाहजी भोंसले से अपनी पुत्री जिजाऊ यानि जीजाबाई की शादी करवा दी।
शाहजी के साथ जीजाबाई का जीवन
जीजाबाई और शाहजी के विवाह के बाद जब वह बड़े हुए तब शाहजी बीजापुर दरबार में राजनयिक हुए। बीजापुर के महाराज ने शाहजी की मदद से अनेक युद्ध में विजय प्राप्त की, इसी खुशी में बीजापुर के सुलतान ने उन्हें अनेक जागीर तोहफे में दी थी। उन्हीं तोहफों में एक जागीरें शिवनेरी का दुर्ग भी शामिल है। यहाँ जीजाबाई और उनके बच्चे रहा करते थे। जीजाबाई ने 6 पुत्रीयों व दो पुत्रों को जन्म दिया था। उन्ही पुत्रों में से एक शिवाजी थे।
शिवनेरी के दुर्ग में हुआ शिवाजी का जन्म
शाहजी ने अपने बच्चों एवं जीजाबाई की रक्षा के लिए उन्हें शिवनेरी के दुर्ग में रखा, क्योंकि उस वक्त शाहजी को अनेक शत्रुओं का भय था। यहाँ शिवनेरी के दुर्ग में ही शिवाजी का जन्म हुआ और बताया जाता है कि शिवाजी के जन्म के समय शाहजी जीजाबाई के पास नहीं थे। शिवाजी के जन्म के बाद शाहजी को मुस्तफाखाँ ने उन्हें बंदी बना लिया था। उसके 12 वर्ष बाद शाहजी और शिवाजी की भेंट हुई।
शिवनेर दुर्ग में पति की उपेक्षा के कारण जीजाबाई ने अनेक असहनीय कष्टों को सहते हुए बालक शिवा का लालन- पालन किया। उसके लिए क्षत्रिय वेशानुरूप शास्त्रीय-शिक्षा के साथ शस्त्र-शिक्षा की व्यवस्था की। उन्होंने शिवाजी की शिक्षा के लिए दादाजी कोंडदेव जैसे व्यक्ति को नियुक्त किया। स्वयं भी रामायण, महाभारत तथा वीर बहादुरों की गौरव गाथाएं सुनाकर शिवाजी के मन में हिन्दू- भावना के साथ वीर-भावना की प्रतिष्ठा की। वह प्रायः कहा करती- ‘यदि तुम संसार में आदर्श हिन्दू बनकर रहना चाहते हो तो स्वराज की स्थापना करो। देश से यवनों और विधर्मियों को निकालकर हिन्दू- धर्म की रक्षा करो।’
जीजाबाई बहुत ही चतुर और बुद्धिमानी महिला थी, उन्होंने मराठा साम्राज्य के लिए अनेक ऐसे फैसले लिए जिनकी वजह से स्वराज स्थापित हुआ। एक प्रसंग मिलता है कि राज्य में महिलाओं के साथ होते अत्याचार को देखते हुए जीजाबाई ‘माँ भवानी’ के मंदिर जाती है, माँ से पुकार करती है कि स्त्रियों की इन दुर्दशा को दूर करने के लिए कोई उपाय बतायें, तो माँ खुश होकर जीजाबाई को वरदान देती है कि उनके पुत्र के द्वारा अबलाओं की लाज, एवं उनपर हो रहे अत्याचारों को रोका जाएगा।
यही वजह है कि शिवाजी हमेशा भवानी माँ को पूजते थे और अपनी माँ के द्वारा मिली शिक्षा का निर्वहन करते हुए माँ को हमेशा पूजते रहे। इतिहास में लिखा है कि शिवाजी महाराज के पास एक ऐसी तलवार थी जिसका नाम ‘भवानी’ था यह भी माँ भवानी के वरदान से प्राप्त की गई थी।
जीजाबाई ने मराठा सम्राज्य के लिए अपने पुत्र शिवाजी को ऐसी कहानियाँ सुनाई, जिनसे उन्हें अपने धर्म और अपने कर्म का ज्ञान हुआ एवं लोगों की रक्षा कैसे करनी है इसका भी ज्ञान हुआ। यही वजह है कि शिवाजी ने 17 वर्ष की आयु में मराठा सेना का निर्माण किया और अनेक पराक्रमियों से लोहा लिया और विजय प्राप्त की। एक समय ऐसा भी आया जब जीजाबाई को शिवनेरी का दुर्ग दोबारा मिल गया था।
जीजाबाई कोई सामान्य महिला नहीं थी। एक माता और पत्नी के अलावा उनके अंदर और भी गुण थे। वे स्वयं एक सक्षम योद्धा और प्रशासक के रूप में जानी जाती थीं। इस लिहाज से शौर्यता उनके रगों में भरी हुई थी। वे शिवाजी को हमेशा वीरता के किस्से सुनाकर उन्हें प्रेरित करती रहती थीं। जब भी शिवाजी मुश्किल मे ं आते, जीजाबाई उनकी मदद में खड़ी नजर आती। पिता के बिना शिवाजी को बड़ा करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी, जिसको उन्होंने बखूबी निभाया। दादा कोंड देव एवं समर्थ गुरु रामदास की मदद से उन्होंने शिवाजी के पालन-पोषण में खुद को पूरी तरह झोंक दिया। साथ ही उनके अंदर वीरता के बीज हमेशा रोपित करती रहीं। यही कारण था कि बहुत छोटी उम्र में ही छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों को चुनौती दी
जीजाबाई के संस्कारों से निर्मित हुए छत्रपति शिवाजी महाराज
अपने जीवन की सभी परेशानियों को भूलते हुए ‘जीजाबाई’ ने अपने पुत्र शिवाजी को ऐसी शिक्षा दी, ऐसे संस्कार दिए जिनकी वजह से उनके पुत्र ने अपने लिए नहीं दूसरों के लिए जीना शुरू किया। उन्होंने अपने धर्म के लिए लड़ना शुरू किया। यही वजह है की शिवाजी को आज बड़े ही गौरव के साथ याद किया जाता है और उन्हें ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ के नाम से संबोधित किया जाता है।
शिवाजी ने हिन्दू सम्राज्य स्थापित करने की शुरुआत की और उन्होंने अपने जीवनकाल में हिन्दू सम्राज्य को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की और अनेक अत्याचारियों का वध किया। यह सब कुछ संभव हुआ था ‘जीजाबाई’ के संस्कारों, उनके द्वारा दी गई शिक्षा की वजह से। औरंगजेब ने जब धोखे से शिवाजी को उनके पुत्र सहित बंदी बना लिया था, तब शिवाजी ने भी कूटनीति तथा छल से मुक्ति पाई और वे जब संन्यासी के वेश में अपनी माँ के सामने भिक्षा लेने पहुँचे तो माँ ने उन्हें पहचान लिया और प्रसन्नचित होकर कहा- ‘अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरा पुत्र स्वराज्य की स्थापना अवश्य करेगा। हिन्दू पद-पादशाही आने में अब कुछ भी विलंब नहीं है।’ अंत में जीजाबाई की साधना सफल हुई। शिवाजी ने महाराष्ट्र के साथ भारत के एक बड़े भाग पर स्वराज्य की स्वतंत्र पताका फहराई, जिसे देखकर जीजाबाई ने शांतिपूर्वक परलोक प्रस्थान किया। वस्तुतः जीजाबाई हिन्दवी स्वराज्य की ही आदि देवी थीं। दृढ़निश्चयी, महान देशभक्त, धर्मात्मा, राष्ट्र निर्माता तथा कुशल प्रशासक शिवाजी का व्यक्तित्व बहुमुखी था। माँ जीजाबाई के प्रति उनकी श्रद्धा और आज्ञाकारिता उन्हें एक आदर्श सुपुत्र सिद्ध करती है।
तरुण शर्मा