समुत्कर्ष समिति द्वारा ‘‘ स्वतन्त्रता अनमोल है’’ विषय पर 78 वीं समुत्कर्ष विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। ऑनलाइन गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए सभी वक्ताओं का कहना था कि किसी भी कीमत पर स्वतंत्रता का मोल नहीं हो सकता। वह तो देश का जीवन है, भला जीवित रहने के लिए क्या कोई मोल नहीं चुकाएगा। स्वतंत्रता हर मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। पराधीनता तो किसी के लिए भी अभिशाप है। आज हम पूर्ण स्वतंत्र हैं तथा पूरे विश्व में भारत की एक पहचान हैं। हमारा राष्ट्रीय ध्वज भी प्रेम, भाईचारे व एकता का प्रतीक है। हमें अपने देशवासियों को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाना है, जहाँ से अनुशासन और स्वतंत्रता दोनों का जन्म होता है।
विषय का प्रवर्तन करते हुए समुत्कर्ष पत्रिका के संपादक वैद्य रामेश्वर प्रसाद शर्मा ने कहा कि देशभक्ति का मतलब सिर्फ ध्वज को लहराना नहीं हैं, बल्कि अपने देश को मजबूत और सशक्त बनाने में सहायता करना भी हैं। स्वतंत्रता की सामान्य परिभाषा ‘प्रतिबंधों की अनुपस्थिति’ है । जीवन के कई क्षेत्रों में, जो दूसरों को सीधे प्रभावित नहीं करते, मानव उनमें अपनी मर्जी से जीना चाहता है। परन्तु एक व्यक्ति के अधिकार दूसरे व्यक्ति के अधिकारों में बाधक नहीं होने चाहिए। यह व्यवस्था तभी संभव है, जबकि स्वतंत्रता अनुशासन से समन्वित हो ।
राजसमन्द से राजेश गोराणा ने बताया कि आज पूरे विश्व में भारत आशा की किरण बनकर सूर्य की भाँति आकाश में चमक रहा है, यह सब आजाद भारत में ही संभव हुआ है। हमें ये आजादी आसानी से नहीं मिली है, यह देश के हजारों शूरवीरों व आजादी के मतवाले नर-नारियों ने अपना बलिदान देकर दिलाई है, हमें उनका सदैव आभार मानना चाहिए। आज हमारे सामने आत्मनिर्भर भारत बनाने की चुनौती आन खड़ी है, जिसे हमें अपना सर्वश्रेष्ठ देकर स्वीकार कर विश्व में भारत का डंका बजाना है।
विजन एकेडमी की प्रिंसिपल प्रतिमा सामर ने इस अवसर पर बताया कि आज हम आजादी की खुली हवा में साँस ले रहे हैं, वह सब भारत माता के उन अमर बलिदानी सपूतों की याद दिलाता है, जिन्होंने अपना सर्वस्व देश के नाम कर दिया था। भारत के प्रसिद्ध विद्वानों, कवियों, इतिहासकारों अथवा लेखकों ने भारत का सामाजिक रूप से सुधार करके भारत की आजादी में अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। आज हमें उनके सपनों का भारत बनाने के लिए जुट जाना चाहिये।
अपनी बात रखते हुए आचार्य सत्यप्रिय शास्त्री ने कहा कि आजाद होने का जोश कभी कम ना होने देंगे, जब भी जरूरत पड़ेगी तो देश के लिए जान लुटा देंगे! हमारा सैंकड़ों वर्षो से सतत संघर्ष और विजयशाली इतिहास रहा है। हमने कभी अपने धर्म और संस्कृति को नहीं छोड़ा है। अपने अधिकारों से ज्यादा अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा, तभी हमारा देश पूरे विश्व में एक महाशक्ति बनकर सामने आएगा। यही हमारा मुख्य ध्येय है।
इस अवसर पर संदीप आमेटा, हरिदत्त शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
समुत्कर्ष पत्रिका के उपसंपादक गोविन्द शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए आभार प्रदर्शन किया। संचालन शिक्षाविद् शिवशंकर खण्डेलवाल ने किया।
इस ऑनलाइन विचार गोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य हस्तीमल जी, पूर्व महापौर रजनी डांगी, अनुष्का अकैडमी के निदेशक राजीव सुराना, इंद्र नारायण मेघवाल, भूपेंद्र शर्मा, राम मोहन शर्मा, पंकज वया, रश्मि मेहता, राजेश सैनी, गोपाल लाल माली लोकेश जोशी, कविता शर्मा, गिरीश चैबीसा, शंभू सिंह आसोलिया भी सम्मिलित हुए।
शिवशंकर खण्डेलवाल