जिन्होंने अपनी फाँसी के दिन सज-धजकर हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को गले लगाया था।
तेजस्वी तथा लक्ष्य प्रेरित लोग किसी के जीवन को कैसे बदल सकते हैं, मदनलाल ढींगरा इसका उदाहरण है। मदनलाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर, 1883 को पंजाब प्रांत के अमृतसर में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामलजी सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रँगे हुए थे। किंतु माताजी अत्यंत धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वास पात्र था। जब मदनलाल को भारतीय स्वतंत्रता संबंधी क्रांति के आरोप में लाहौर के एक काॅलेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया था।
फिर अपने बडे भाई की सलाह पर सन् 1906 में वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड चले गए, जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी काॅलेज लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश ले लिया। लंदन में मदन लाल प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए। मदनलाल इंडिया हाउस में रहने लगे थे। वहाँ के सभी देशभक्त खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिंदर पाल और काशी राम जैसे क्रांतिकारियों को मृत्युदंड दिए जाने से बहुत क्रोधित थे।
उन दिनों विनायक दामोदर सावरकर भी वहीं थे। 10 मई, 1908 को इण्डिया हाउस में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की अर्द्धशताब्दी मनायी गयी। उसमें बलिदानी वीरों को श्रद्धाँजलि दी गयी तथा सभी को स्वाधीनता के बैज भेंट दिये गये। सावरकर जी के भाषण ने मदनलाल के मन में हलचल मचा दी।
अगले दिन बैज लगाकर वह जब काॅलेज गया, तो अंग्रेज छात्र मारपीट करने लगे। ढींगरा का मन बदले की आग में जल उठा। उसने वापस आकर सावरकर जी को सब बताया। उन्होंने पूछा, क्या तुम कुछ कष्ट उठा सकते हो ? मदनलाल ने अपना हाथ मेज पर रख दिया। सावरकर के हाथ में एक सूआ था। उन्होंने वह उसके हाथ पर दे मारा। सूजा एक क्षण में पार हो गया पर मदनलाल ने उफ तक नहीं की। सावरकर ने उसे गले लगा लिया। फिर तो दोनों में ऐसा प्रेम हुआ कि राग-रंग में डूबे रहने वाले मदनलाल का जीवन बदल गया।
सावरकर की योजना से मदनलाल ‘इण्डिया हाउस’ छोड़कर एक अंग्रेज परिवार में रहने लगे। उन्होंने अंग्रेजों से मित्रता बढ़ायी। पर गुप्त रूप से वह शस्त्र संग्रह, उनका अभ्यास तथा शस्त्रों को भारत भेजने के काम में सावरकर जी के साथ लगे रहे। ब्रिटेन में भारत सचिव का सहायक कर्जन वायली था। वह विदेशों में चल रही भारतीय स्वतन्त्रता की गतिविधियों को कुचलने में स्वयं को गौरवान्वित समझता था। मदनलाल को उसे मारने का काम सौंपा गया। मदनलाल ने एक कोल्ट रिवाल्वर तथा एक फ्रैच पिस्तौल खरीद ली। वह अंग्रेज समर्थक संस्था ‘इण्डियन नेशनल एसोसिएशन’ का सदस्य बन गया। एक जुलाई, 1909 को इस संस्था के वार्षिकोत्सव में कर्जन वायली मुख्य अतिथि था।
कर्जन वाईली का वध
01 जुलाई, 1909 की शाम को इण्डियन नेशनल एसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकट्ठे हुए। मदनलाल भी सूट और टाई में सजकर मंच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये। उनकी जेब में पिस्तौल, रिवाल्वर तथा दो चाकू थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही मदनलाल कर्जन वाईली से कुछ खास बात करने के बहाने उनके समीप पहुँचे और उन्हें गोली मार दी। मदनलाल के हाथों सर कर्जन वायली के साथ उनको बचाने आए फारसी डाॅक्टर कावसजी लालकाका की भी मौत हो गई। मदनलाल ने मौके से भागने की जगह आत्म-हत्या का विचार किया पर इससे पहले ही उन्हें पकड़ लिया गया।
कर्जन वाईली और फारसी डाॅक्टर कावसजी लालकाका की हत्या के आरोप में उन पर 23 जुलाई, 1909 को अभियोग चलाया गया। अंत में 17 अगस्त, 1909 को उन्हें फांसी दे दी गई। भारत समेत ब्रिटेन में भी मदनलाल के समर्थन में आवाजें उठीं पर उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। 5 जुलाई को इस हत्या की निन्दा में एक सभा हुई पर सावरकर ने वहाँ निन्दा प्रस्ताव पारित नहीं होने दिया। उन्हें देखकर लोग भय से भाग खड़े हुए। अब मदनलाल पर मुकदमें का नाटक शुरू हुआ।
अंततः 17 अगस्त, 1909 को पेण्टनविला जेल में मदनलाल ढींगरा ने खूब बन-ठन कर भारत माता की जय बोलते हुए फाँसी का फन्दा चूम लिया। उस दिन वह बहुत प्रसन्न थे। इस घटना का इंग्लैण्ड के भारतीयों पर इतना प्रभाव पड़ा कि उस दिन सभी ने उपवास रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। देश अपने शूरवीर क्रांतिकारियों पर हमेशा से गर्वित रहा है और आगे भी रहेगा।
तरुण शर्मा