देश को खेलों की महाशक्ति बनाने के लिए जमीनी स्तर पर इसे बढ़ावा देने के साथ प्रतिभाओं की पहचान करना जरूरी है। ओलंपिक जैसे खेल-कुम्भ में पदकों की संख्या में तभी इज़ाफा होगा जब देश में जमीनी स्तर पर गंभीरता से काम होगा। अगर आप टोक्यो ओलम्पिक में प्रतिभागी हमारे खिलाड़ियों को देखेंगे तो इसमें से 80 प्रतिशत से अधिक गाँवों या छोटे शहरों के हैं। देश में खेलों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, बस जमीनी स्तर पर सही कोचिंग और आधारभूत संरचना की जरूरत है।
‘‘एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन रहता है।’’ जिसका अर्थ है कि, जीवन में आगे बढ़ने और जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए तंदुरस्त शरीर में एक स्वस्थ मन होना चाहिए। जिसके लिए हमें अपने जीवन में खेलों को अपनाना होगा। खेल द्वारा हममें उच्च स्तर का आत्मविश्वास पैदा होता है, जिससेहमारे जीवन में अनुशासन उत्पन्न होता है और यह अनुशासन हमारे साथ पूरे जीवन भर रहता है।
भारत के लिए अक्सर यह अपने भीतर झाँककर सवाल पूछने का वक्त होता है। 1.3 अरब लोगों का देश अच्छी तादाद में पदक क्यों नहीं ला सकता? लेकिन यह घिसा-पिटा प्रश्न है। उत्तर हम जानते हैं। क्रिकेट के अलावा दूसरी खेल प्रतिभाओं में योजनाबद्ध ढंग से निवेश नहीं कर पाना। खेलों को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई संस्थाएँ राजनैतिक आरामगाह, और उससे भी बदतर, भाई-भतीजावाद और षड्यंत्र के अड्डे बन गई हैं। नतीजा सामने है। हमारे यहाँ खेलों की इस स्थिति के दो मुख्य कारण हैं। पहला, हमारे देश में खेलों के प्रति रवैया और दूसरा, समय पर प्रतिभा की पहचान का अभाव। हमारे देश का दृष्टिकोण बदलना एक क्रमिक प्रक्रिया है, समय पर प्रतिभा की पहचान समय की आवश्यकता है।
विद्यालय स्तर से ही खिलाड़ी के प्रत्येक खेल में प्रदर्शन का विधिवत विश्लेषण किया जाना चाहिए और तदनुसार उसके लिए एक रास्ता निर्धारित किया जाना चाहिए ताकि भावी खेल जीवन में यह प्रारंभिक दिशा बच्चे को भविष्य में उत्कृष्टता के लिए मार्गदर्शन कर सके। आवश्यकता है हम एक खेल प्रणाली विकसित करें जो स्थानीय प्रतिभा को वैश्विक मंचों से जोडे़ तथा जो प्रत्येक भारतीय को मनोरंजन के लिए अपने जीवन के एक हिस्से के रूप में खेल के लिए प्रोत्साहित करे ।